कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि घोषित कैसे करवाए ? उद्योग या आवासीय उपयोग के लिए कृषिक भूमि के उपयोग का परिवर्तन कैसे कराये ?
नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि " कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि घोषित कैसे करवाए ? उद्योग या आवासीय उपयोग के लिए कृषिक भूमि के उपयोग का परिवर्तन कैसे कराये ?
उत्तर प्रदेश में लगभग सभी लोगो के पास अपनी कृषिक भूमि है, इसमें से कुछ लोग अपनी कृषिक भूमि का उपयोग कृषिक उप्तादकों के उत्पादन में करते है, तो कुछ कृषिक भूमि को बिना किसी उपयोग के ऐसे ही छोड़ देते है। या उस कृषिक भूमि का उपयोग कृषिक प्रयोजन के अलावा व्यावसायिक या आवसीय उपयोग के लिए सोचते है। तो ऐसे में जो कृषिक भूमि का उपयोग का व्यावसायिक या आवासीय प्रयोजन के लिए करना चाहते है, तो उनको , उत्तर प्रदेश ज़मींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 143 के तहत ऐसे कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि घोषित करवाने के लिए सहायक कलेक्टर / उपजिलाधिकारी के यहाँ प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना पड़ेगा ।
इस सम्बन्ध में आपके मन कई प्रकार के सवाल उठ रहेंगे होंगे जैसे कि :-
- कौन सा भूमिधर कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि में घोषित करा सकता है ?
- उद्योग या आवासीय उपयोग के लिए कृषिक भूमि का परिवर्तन कैसे होता ?
- कृषिक भूमि का अकृषिक भूमि में घोषित हो जाने पर क्या करना होगा ?
आपके इन्ही सभी सवालों को एक -एक कर विस्तार से जानेंगे।
1. कौन सा भूमिधर कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि में घोषित करा सकेगा ?
उत्तर प्रदेश ज़मींदारीविनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 130 के तहत संक्रमणीय भूमिधर जिसे अपनी भूमि अंतरित करने का अधिकार प्राप्त है, यानी ऐसा भूमिधर जो भूमि को किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित करने का अधिकार रखता है। वही भूमिधर अधिनियम की धारा 143 के तहत कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि में घोषित करा सकेगा।
2. उद्योग या आवासीय उपयोग के लिए कृषिक भूमि का परिवर्तन कैसे होता है ?
उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले संक्रमणीय भूमिधर यानी जिन्हे अपनी कृषि भूमि अंतरण / ट्रांसफर और किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग करने का पूर्ण अधिकार है, भूमि का किसी भी प्रयोजन के उपयोग करने का अधिकार रखते हुए संक्रमणीय भूमिधर अपनी कृषिक भूमि को अकृषिक घोषित करा कर उसका उपयोग औद्योगिक या आवसीय के प्रयोजन के लिए उपयोग कर सकेगा। इसका प्रावधान उत्तर प्रदेश ज़मींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143 में किया गया है।
उत्तर प्रदेश ज़मींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 143 अनुसार खाते की भूमि का उद्योग अथवा निवास के प्रयोजन के लिए उपयोग करने के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है।
धारा 143 उपधारा 1 के तहत जब कोई संक्रमणीय अधिकार वाला भूमिधर जिसे भूमि हस्तानांतरण अधिकार है, अपने खाते या उसके किसी भाग का उपयोग कृषि, उद्यानकरण यानी बागवानी अथवा पशुपालन जिसके अंतर्गत मत्स्य पालन यानी मछली पालन तथा कुक्कुट यानी मुर्गी पालन भी है, इससे सम्बंधित प्रयोजन से अलग करता है, तो परगने का इंचार्ज सहायक कलेक्टर स्वयं यानी सहायक कलेक्टर को लेखपाल की रिपोर्ट मिलने पर , की उक्त परगने कि कृषिक भूमि गाटा संख्या का उपयोग पिछले 6 महीनों से कृषिक प्रजोजन से नहीं हो रहा है, तो ऐसी रिपोर्ट मिलने पर या कृषिक भूमि को अकृषिक प्रयोजन के लिए उपयोग करने के लिए सहायक कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत किये गए प्रार्थना पत्र पर और ऐसी जाँच करने के बाद जो निर्धारित की जाये उस आशय यानी कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि घोषित करने की घोषणा कर सकता है।
कृषिक भूमि को अकृषिक घोषित करवाने के लिए प्रार्थना कैसे दिया जायेगा ?
उत्तर प्रदेश ज़मींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 143 की उपधारा 1 के तहत संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधार अपने खाते यानी कृषिक भूमि या उसके किसी भाग को अकृषिक घोषित करवाने के लिए परगने के सहायक कलेक्टर के समक्ष इस आशय से एक प्रार्थना पत्र व् इसके साथ आवश्यक दस्तावेजों को संलग्न पर दाखिल कर सकेंगे।
पप्रार्थना पत्र के साथ लगने वाले दस्तावेजों की सूची निम्न है :-
- कृषिक भूमि को अकृषिक भूमि घोषित करवाने के सम्बन्ध में लिखित प्रार्थना पत्र।
- खतौनी,
- नक्शा,
- भारमुक्त प्रमाणपत्र,
- यदि कृषिक भूमि क्रय की गयी है, तो विक्रय विलेख / बैनामा।
- यदि कृषिक भूमि रेलवे लाइन की 30 मीटर दूरी के भीतर स्थित है , तो रेलवे से अनापत्ति प्रमाणपत्र।
- संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर का पहचान प्रमाणपत्र।
- अन्य दस्तावेज।
यदि कृषिक भूमि के किसी भाग को अकृषिक घोषित किया गया है तो क्या होगा ?
उत्तर प्रदेश ज़मींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 143 की उपधारा 1 के अधीन कोई घोषणा किसी खाते के भाग के सम्बन्ध में करना हो तो परगने का इंचार्ज सहायक कलेक्टर निर्धारित रीति से ऐसे भाग को ऐसी घोषणा के प्रयोजन के निमित्त सीमांकित कर सकता है।
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