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जुडिशल सेपरेशन क्या होता ? डाइवोर्स क्या होता है ? जुडिशल सेपरेशन व् डाइवोर्स में अंतर् व् समानताएँ क्या है ?

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 नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में आप सभी को हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत "जुडिशल सेपेरेशन व् डाइवोर्स" में अंतर् क्या है, इसके बारे में विस्तार से बनाते वाले है। 
  1. जुडिशल सेपरेशन क्या होता ?
  2. डाइवोर्स क्या होता है ?
  3. जुडिशल सेपरेशन व् डाइवोर्स में अंतर् क्या है ? 
जुडिशल सेपरेशन क्या होता ? डाइवोर्स क्या होता है ? जुडिशल सेपरेशन व् डाइवोर्स में अंतर् व् समानताएँ क्या है ?   what is judicial separation and what is divorce ? difference between judicial separation and divorce ? similarity between judicial separation and divorce?


तो अब, इन्ही सभी सवालो के जवाब विस्तार से जाने :-

1. क्या जुडिशल सेपेरेशन क्या होता है ?
1. जुडिशल सेपेरशन यानी न्यायिक अलगाव जिसका अर्थ विधिक प्रक्रिया से वैवाहिक जीवन से अलग होना है। कई बार विवाहित जोड़ों के सामने ऐसी कई गंभीर परिस्थितियां आ जाती है, कि पति -पत्नी दोनों का एक दूसरे के साथ रहना संभव नहीं रह जाता है। एक साथ न रहने के अपने कई कारण हो सकते है। यदि पति पत्नी किसी कारण एक दूसरे के साथ वैवाहिक जीवन नहीं व्यतीत करना चाह रहे और अपने इस पति पत्नी के सम्बन्ध से अलग होना चाह रहे है तो इसमें से कोई भी, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 धारा 10 जुडिशल सेपेरशन के तहत विवाहित जोड़े में से कोई भी वह चाहे पति हो या पत्नी अधिनियम की धारा 13 की उपधारा 1 व् उपधारा 2 के अधीन दिए गए आधारों में से किसी भी ऐसे आधार पर जिसके तहत विवाह विच्छेद यानी तलाक के लिए अर्जी दी जा सकती थी अलग होने के लिए अपने क्षेत्र की क्षेत्राधिकारिता वाली न्यायालय में न्यायिक अलगाव की डिक्री के लिए प्रार्थना करते हुए अर्जी दाखिल कर सकती या सकता है।

2. डाइवोर्स क्या है ?
डाइवोर्स यानी विवाह विच्छेद जिसका अर्थ विवाह के सम्बन्ध को पूर्णतः भंग करना है। कई बार विवहित जोड़ो के सामने कई ऐसी परिस्थितियां आ जाती है जिसके कारण वह अपने वैवाहिक जीवन को आगे बढ़ा सकने में असमर्थ होते है। यदि पति-पत्नी अपने वैवाहिक जीवन के सम्बन्ध को किन्ही पर्याप्त कारणों से आगे सुचारु रूप से चला नहीं सकते है तो कानून द्वारा उनको उपचार भी प्रदान किया गया है। वह यह है कि हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 में विवाह विच्छेद यानी तलाक के लिए आधार बताये गए है जिनके तहत पति व् पत्नी अपने क्षेत्र के क्षेत्राधिकारिता वाले न्यायालय में तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते है।

हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, की धारा 13 के तहत विवाह विच्छेद (तलाक़) के लिए आधार :-

यदि विवाहित जोड़े में से कोई भी वह चाहे पति हो या पत्नी अपने वैवाहिक सम्बन्ध को किन्ही पर्याप्त कारणों से भंग करना चाह रही या पति -पत्नी के इस सम्बन्ध में एक दूसरे के साथ नहीं रहना चाह रहे है तो, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, की धारा 13 के अधीन आधारों में से किन्ही आधारों के आधार पर पति -पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को विवाह विच्छेद कर विवाह भंग कर सकते है। विवाह विच्छेद यानी तलाक के आधार निम्न हो सकते है:-

1. व्यभिचार- विवाह के बाद पति या पत्नी ने अपने पति या पति से अलग किसी अन्य पुरुष या महिला के साथ अपनी सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है।

2. क्रूरता- विवाह के बाद पति या पत्नी द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध क्रूरता का बर्ताव किया जाता है।  क्रूरता जैसे कि हर बात पे लज्जित करना, ससुराल व् मायके वालो के सामने बदनाम करना, आवश्यक वस्तुओं से वंचित रखना अदि।

3.त्याग- विवाह के बाद पति या पत्नी ने एक दूसरे को कम से कम याचिका प्रस्तुत करने से 2 साल पहले छोड़ दिया है। यानी 2 साल से दोनों में से किसी का पता नहीं है।

4.धर्म परिवर्तन - विवाह के बाद पति या पत्नी दोनों में से कोई भी हिन्दू धर्म को छोड़ कर किसी अन्य धर्म में परिवर्तित हो गया है और उसने दूसरा अन्य धर्म अपना लिया है।

5. मानसिक रोग से ग्रस्त -विवाहित जोड़े में से कोई भी किसी ऐसे मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाता है जिसमे दिमागी हालत ऐसी हो कि वह अब ठीक नहीं हो सकता है या इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित है कि किसी भी युक्तयुक्त कारण से उसके साथ रहना संभव नहीं है।

6. कुष्ठ रोग से पीड़ित - पति या पत्नी दोनों में से कोई भी कुष्ठ रोग से पीड़ित है और वह कुष्ठ रोग ऐसा है कि उसका उपचार होना असंभव है या वह कुष्ठ रोग उग्र और असाध्य है। 

7. यौन रोग से पीड़ित - पति या पत्नी दोनों में से कोई भी फैलने वाले यौन रोग से पीड़ित है।

8. सन्यास - पति या पत्नी दोनों में से कोई भी किसी धार्मिक आश्रम में प्रवेश कर संसार का परित्याग कर देता है।
9. सात वर्ष तक सुना न गया हो - पति या पत्नी दोनों में से किसी ने एक दूसरे के बारे में सात वर्ष तक या अधिक कालावधि तक एक दूसरे के जीवित होने के बारे में न सुना हो और न जीवित होने की खबर सुनी है।

जुडिशल सेपरेशन और डाइवोर्स में अंतर् क्या है ?

 जुडिशल सेपेरेशन।  
  1. हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, की धारा 10 में जुडिशल सेपेरेशन यानी न्यायिक अलगाव का प्रावधान किया गया है। 
  2. न्यायिक अलगाव में पति व् पत्नी दोनों के दांपत्य अधिकार समाप्त हो जाते है। 
  3. न्यायिक अलगाव में पति व् पत्नी दोनों का वैवाहिक सम्बन्ध कायम रहता है। 
  4. न्यायिक अलगाव की कालवधि के दौरान अलग रह रहे पति व् पत्नी पुनः विवाह तब तक नहीं कर सकते है जब तक कि अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह विच्छेद (तलाक) नहीं हो जाता है। 
  5. न्यायिक अलगाव के 1 साल या अधिक कालावधि तक अलग रह रहे पति-पत्नी विवाह विच्छेद के लिए अपने क्षेत्राधिकारिता वाले सक्षम न्यायालय में विवाह विच्छेद के लिए याचिका दायर कर सकते है। 
  6. न्यायिक अलगाव का मुख्य उद्द्देश्य पति-पति के सम्बन्ध को जोड़ना होता है। इस अलगाव की अवधि में हो सकता है कि उनके मन में जो किसी बात को लेकर नाराजगी हो या जो भी हो शांत हो जाये। 
डाइवोर्स।  
  1. हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, की धारा 13 में डाइवोर्स यानी विवाह विच्छेद (तलाक) का प्रावधान किया गया है।   
  2. विवाह विच्छेद में पति व् पत्नी का वैवाहिक सम्बन्ध पूर्णतः समाप्त हो जाता है।
  3. विवाह विच्छेद के बाद दोनों पक्षकार अपने मुताबिक पुनः विवाह करने के अधिकारी हो जाते है। 
  4.  विवाह विच्छेद का मुख्य उद्देश्य पति- पत्नी के दाम्पत्य सम्बन्धो को समाप्त करना होता है। दोनों पक्षकार स्वतंत्र रूप से जीवन जीने को व् पुनः विवाह करने को आजाद हो जाते है।  
जुडिशल सेपरेशन व् डाइवोर्स में समानता क्या है ?

हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, की धारा 10 जुडिशल सेपरेशन यानी न्यायिक अलगाव व् धारा 13 डाइवोर्स यानी विवाह विच्छेद (तलाक़), इन दोनों में समानता एक ही समानता है वो यह कि इन दोनों में विवाहित जोड़े अलग हो जाते है। 

2 comments:

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