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इद्दत क्या होता है और इद्दत में पत्नी के अधिकार क्या है

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नमस्कार मित्रों,

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि " इद्दत काल क्या होता है और इद्दत काल में पत्नी के अधिकार क्या है ? इद्दत काल जो कि मुस्लिम समुदाय के मुस्लिम विधि के अनुसार एक ऐसी अवधि जिसका पालन पत्नी को तलाक और पति की मृत्यु के बाद करना अनिवार्य है। 

इद्दत काल की इस अवधि में मुस्लिम महिलाओं को कई अपने मुस्लिम विधि के अनुसार कई नियमों का पालन करना अनिवार्य हो जाता है, साथ ही साथ कई पाबन्दी भी लग जाती है। 

इद्दत क्या होता है और इद्दत में पत्नी के अधिकार क्या है


इद्दत काल को लेकर कई सवाल जहन में उठ रहे होंगे जैसे कि :-
  1. इद्दत क्या होता है ?
  2. इद्दत की अवधि क्या होती है ?
  3. इद्दत में मुस्लिम स्त्री के अधिकार क्या होंगे है ?
इन सभी सवालों के जवाब  विस्तार से जानते है। 

1. इद्दत काल क्या होता है ? 

मुस्लिम विधि के अनुसार मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को इद्दत कि अवधि का अनिवार्यतः के साथ पालन करना होता है। इद्दत शब्द का अर्थ है एक ऐसी अवधि जिसमे जिस मुस्लिम स्त्री का विवाह विच्छेद उसके पति / शोहर की मृत्यु या तलाक के द्वारा हो गया है , उसे एकांत में रहने और दूसरे पुरुष से विवाह न करना अनिवार्य है। मुस्लिम विधि के अनुसार जब कोई विवाह पति के मृत्यु या विवाह विच्छेद के कारण विघटित हो जाता है, तो स्त्री कुछ निर्धारित अवधि तक पुनः विवाह नहीं कर सकती है, इस निर्धारित समय सीमा को इद्दत कहा जाता है। इद्दत काल एक ऐसा अंतराल जो कि विवाह विच्छेद या मृत्यु से वैवाहिक संबंधों की समाप्ति और दूसरे वैवाहिक संबंधों की शुरुवात के मध्य का समय , जिसक पालन करना स्त्री के लिए अनिवार्य है। इद्दत काल के पूर्ण हो जाने पर नए वैवाहिक संबंधों को वैध बना देता है। 

इद्दत काल का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि क्या स्त्री पति से गर्भवती है या नहीं ? ,
जिससे मृत्यु या विवाह विच्छेद के बाद उत्त्पन्न हुई संतान की पैतृकता के सम्बन्ध में भ्रम न पैदा हो, की उस संतान का पिता कौन है। 

2. इद्दत की अवधि कितनी होती है ?   

इद्दत की शुरुआत होने कि निम्न परिस्थिति है :-
  1. मृत्यु की इद्दत ( जब पति की मृत्यु से विवाह की समाप्ति हो )
  2. विवाह विच्छेद की इद्दत। 
  3. अनियमित विवाह की स्थिति में इद्दत। 
 1. मृत्यु की इद्दत - जब पति की मृत्यु से विवाह की समाप्ति हो अर्थात जब कोई मुसलमान व्यक्ति अपनी पत्नी को छोड़कर मर जाता है , तो उसकी विधवा को 4 महीने 10 दिन की अवधि समाप्त होने से पहले दूसरा विवाह करना मना है , यानी इद्दत की इस अवधि का पालन करना अनिवार्य है।  इद्दत की अवधि की शुरू पति की मृत्यु के समय से ही शरू हो जाती है न की मृत्यु की सूचना पाने की तिथि से। 

यदि किसी मुसलमान व्यक्ति की पत्नी, पति की मृत्यु के समय गर्भवती है , तो संतान होने या गर्भपात हो जाने तक इद्दत की अवधि समाप्त नहीं होगी। 

यदि 4 महीने 10 दिन की इस इद्दत अवधि के समाप्त होने से पहले संतान उत्पन्न हो जाती है या गर्भपात हो जाये तो इद्दत अवधि पुरे होने में जो समय बचा रह गया था उस अवधि को पूरा करना होगा। 

2. विवाह विच्छेद की इद्दत - जब मुसलमान पुरुष और स्त्री अपने वैवाहिक सम्बन्ध को विवाह विच्छेद से समाप्त कर लेते है , तो इद्दत की अवधि का पालन स्त्री को करना होता है, विवाह विच्छेद की अवस्था में यदि स्त्री को मासिक धर्म होता है , तो इद्दत की अवधि 3 मासिक धर्म होगी , यदि मासिक धर्म नहीं होता तो इद्दत की अवधि 3 चंद्रमास होगी। 

जब विवाह विछेद बाद लेकिन इद्दत की अवधि के पूर्ण होने से पहले पति की मृत्यु हो जाये तो इद्दत की अवधि फिर मृत्यु की तारीख शुरू होगी। 
 
विवाह विच्छेद की इद्दत की अवधि विवाह विच्छेद की तिथि से ही शुरू हो जाती है न कि विवाह विच्छेद की सूचना पाने की तिथि से। 

लेकिन मृत्यु की सूचना या विवाह विच्छेद की सूचना , इद्दत के लिए निश्चित अवधि के बाद स्त्री को प्राप्त होती है ,तो उस स्त्री को इद्दत की अवधि का पालन करना आवश्यक नहीं है। 

3. अनियमित विवाह की स्थिति में इद्दत -  यदि मुस्लिम विवाह अनियमित है औ इसकी पूर्णावस्था के पहले ही पति- पत्नी अलग हो गए है तो को इद्दत नहीं होगा। यदि अनियमित विवाह पूर्णावस्था को प्राप्त हो गयी है तो पत्नी के लिए इद्दत का पालन करना आवश्यक है। 

1. नियमित विवाह / मान्य विवाह में इद्दत की अवधि -
  1. तलाक के द्वारा विवाह विच्छेद में 3 चंद्रमास या 3 मासिक धर्म, यदि स्त्री गर्भवती हो तो संतान होने तक , जो भी अवधि लम्बी हो। 
  2. पति की मृत्यु के बाद विधवा को 4 महीने 10 दिन , यदि विधवा गर्भवती है तो संतान होने तक जो भी अवधि लम्बी हो। 
2. अनियमित विवाहों में इद्दत की अवधि -
  1. मृत्यु या विवाह विच्छेद होने पर 3 चंद्रमास या 3 मासिक धर्म।  
  2. यदि पत्नी के द्वारा इद्दत अवधि बिताने के दौरान पति की मृत्यु हो जाये तो पत्नी को फिर से नई इद्दत  पति की मृत्यु के समय से शरू करनी होगी। 
4. इद्दत में मुस्लिम स्त्री के अधिकार क्या होंगे ?

मुस्लिम स्त्री को इद्दत की अवधि में निम्नलिखित अधिकार उत्पन्न होंगे जो कि  :-
  1. मुस्लिम महिला ( विवाह विच्छेद पर अधिकारों का संरक्षण ) अधिनियम 1986 के प्रावधानों के तहत विवाह विच्छेद की अवस्था में स्त्री इद्दत का समय व्यतीत कर रही है तो इद्दत की अवधि  में उसके निर्वाह / भरण भरणपोशण के लिए पति उत्तरदायी होगा। इस अधिनियम के तहत तलाक़शुदा स्त्री पूर्व पति से भरण पोषण पाने के लिए तब तक हक़दारोगी जब तक वह अन्य पुरुष से विवाह नहीं कर लेती है। 
  2. पत्नी मुवज्जल मेहर की हक़दार हो जाती है अउ यदि मुवज्जल मेहर का भुगतान नहीं किया गया तो वह तुरंत देय होगा। 
  3. यदि विवाह विच्छेद मृत्युरोग यानी ऐसे रोग में जिसमें मृत्यु का होना संभव में दिया गया और पत्नी की इद्दत  पूरी होने से पहले पति की मृत्यु हो जाये तो यदि उसकी मृत्यु से पहले विवाह विच्छेद अप्रतिसंहरणीय भी हो गया हो तो भी पत्नी पति की संपत्ति को उत्तराधिकार के रूप में पाने की हक़दार हो जाती है, बशर्तें विवाह विच्छेद उसकी सहमति से न किया गया हो। 
  4. इद्दत की अवधि समाप्त होने से पहले पति पत्नी में से किसी मृत्यु हो जाने पर यदि मृत्यु होने से पहले विवाह विच्छेद अप्रतिसंहरणीय नहीं हो गया , तो दूसरा पक्षकार पति -पत्नी के रूप में पत्नी या पति से जैसी स्थिति हो संपत्ति को उत्तराधिकार के रूप में पाने का हक़दार होगा।  
5. इद्दत में मुस्लिम स्त्री के कर्तव्य क्या है ?

मुस्लिम स्त्री को इद्दत में निम्नलिखित कर्तव्यों का पालन करना होता है :-
  1. स्त्री अपने इद्दत के पूर्ण होने से पहले किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं कर सकती है। 
  2. यदि तलाक़ दी गयी पत्नी को मिलकर 4 पत्नियाँ है तो तलाक़ दी गयी स्त्री को इद्दत की अवधी पूरी करने तक पति किसी पाँचवी स्त्री से विवाह नहीं कर सकता है। 


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