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पुलिस FIR दर्ज करने से इंकार करें तो कहां शिकायत करें ?

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नमस्कार मित्रों,

आज के इस लेख ने हम जानेंगे कि पुलिस FIR दर्ज न करें तो कहां शिकायत करें ? अक्सर व्यक्ति किसी न किसी व्यक्ति के कोई न कोई आपराधिक घटना घटती है , जैसे चोरी, लूट, मारपीट, डैकेती, हत्या, धोखाधड़ी, बलात्कार, अपहरण, यौनउत्पीडन, ऐसिड अटैक जैसे अन्य गंभीर अपराध की घटने के पर पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार या मित्रों के द्वारा घटित अपराध की सूचना की जानकारी थाने के पुलिस भारसाधक अधिकारी को लिखित या मौखिक रूप से दी जारी है और वह अधिकारी सूचना मिलने पर भी FIR / प्रथम सुचना रिपोर्ट दर्ज करने से इंकार कर रहा हो तो, ऐसे में पीड़ित पक्षकार न्याय की प्राप्ति के लिए किसके समक्ष जाये , यही आज विस्तार से जानेंगे। 

पुलिस FIR दर्ज करने से इंकार करें तो कहां शिकायत करें ? how to lodge fir if police refuse to register fir


सबसे पहले जान ले FIR क्या होती है ?

FIR / प्रथम सूचना रिपोर्ट क्या है ?

प्रथम सूचना रिपोर्ट जिसे शार्ट में FIR कहा जाता है , प्रथम सूचना रिपोर्ट जो कि एक ऐसा लिखित दस्तावेज है , जो कि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा राज्य सरकार से विहित पुस्तक में संज्ञेय अपराध के किये जाने की सूचना मौखिक , लिखित या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मिलने पर दर्ज की जाती है।  प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस मामले का अन्वेषण करती है। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 173 में संज्ञेय मामलों की सूचना के सम्बन्ध में प्रावधान करती है। संज्ञेय अपराध किये जाने से सम्बंधित हर एक सूचना उस क्षेत्र पर विचार किये बिना जहाँ वह संज्ञेय अपराध किया गया है , मौखिक , लिखित या इलेक्ट्रॉनिक संसूचना द्वारा पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को दी जाएगी और उस संज्ञेय अपराध के किये जाने की सूचना का सार ऐसी पुस्तक में दर्ज किया जायेगा जो उस पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी जिसे राज्य सरकार द्वारा इस निमित नियमों द्वारा विहित करें। 


पुलिस FIR दर्ज करने से इंकार करें तो शिकायत कहाँ करें ? 

संज्ञेय अपराध के घटने की सूचना पीड़ित या उसके परिवार या मित्रजनों द्वारा मौखिक, लिखित या इलेट्रॉनिक संसूचना के माध्यम से दिए जाने पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न की जाये तो पीड़ित पक्ष शिकायत कहाँ करें ? न्याय का प्रथम चरण ही विफल हो जाये तो पीड़ित न्याय की पुकार कह करें , इस समस्या का समाधान भी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में दिया गया है। 

पीड़ित पक्षकार के पास दो विकल्प है अपनी सूचना का सार लिखित रूप में देकर कर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का आदेश प्राप्त कर सकता है। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की ये दो धाराएं पीड़ित को संज्ञेय अपराध की सूचना का सार लिखित रूप में देकर  प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का आदेश पारित करने का प्रावधान करती है।

1. BNSS धारा 173 (4 ) के  तहत पुलिस अधीक्षक को सूचना का सार लिखित रूप में जरिये डाक द्वारा भेज कर । 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 173 उपधारा 4 के तहत कोई व्यक्ति जो किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को धारा 173 उपधारा 1 के तहत संज्ञेय अपराध के किये जाने की सूचना दी जाने पर ऐसी सूचना को अभिलिखित करने से इंकार करता , तो व्यथित व्यक्ति ऐसे संज्ञेय अपराध की सूचना का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा सम्बद्ध पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है। 

यदि पुलिस अधीक्षक को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता है तो वह स्वयं मामलें का अन्वेषण करेगा या अपने अधीनस्थ्य किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति में अन्वेषण किये जाने का निदेश देगा और उस अधिकारी को उस अपराध के सम्बन्ध में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां होंगी। 

पुलिस अधीक्षक द्वारा ऐसी सूचना प्राप्त होने पर संज्ञेय अपराध के प्रकट होने का समाधान नहीं हो पाता तो , ऐसा व्यथित व्यक्ति मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकेगा BNSS की धारा  175 (3 ) के तहत न्यायालय में जा सकता है।  

2. BNSS की धारा 175 (3 ) के तहत मजिस्ट्रेट को सूचना का सार लिखित रूप में आवेदन देकर । 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 175 उपधारा 3 के तहत धारा 210 के अधीन सशक्त कोई मजिस्ट्रेट धारा 173 (4 ) के अधीन किये गए शपथपत्र द्वारा समर्थित आवेदन पर विचार करने के बाद और ऐसी जाँच जो वह आवश्यक समझे करने के बाद तथा इस सम्बन्ध में किये निवेदन पर धारा 175 के अधीन संज्ञेय मामलों का अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति के अनुसार ऐसे अन्वेषण का आदेश कर सकेगा । 



भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 210 मजिस्ट्रटों द्वारा अपराधों का संज्ञान के सम्बन्ध में उनकी शक्ति का प्रावधान करती है। 
 
1 धारा 210 की उपधारा 1 के तहत इस अध्याय ( अध्याय 15 कार्यवाहियाँ शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्तें ) के उपबंधों के अधीन रहते हुए , कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और उपधारा 2 के अधीन विशेषतया सशक्त किया गया कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान निम्नलिखित दशाओं में कर सकता है :-

(क )उन तथ्यों का परिवाद प्राप्त होने पर जिनमें किसी विशेष विधि के अधीन प्राधिकृत किये गए किसी व्यक्ति द्वारा फाइल किया गया कोई परिवाद भी है जो ऐसे अपराध को गठित करता है,

(ख )  ऐसे तथ्यों के बारें में इलेक्ट्रॉनिक ढंग सहित किसी ढंग में प्रस्तुत पुलिस रिपोर्ट पर ,

(ग ) पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इस सूचना पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर , कि ऐसा अपराध किया गया है। 

2. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराधों का जिनकी जाँच या विचारण करना उसकी क्षमता के भीतर है उपधारा 1 के अधीन संज्ञान करने के लिए सशक्त कर सकता है।  











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