बैंक या वित्तीय संस्था लोन की रिकवरी कैसे करती है ? सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 उपधारा 4 क्या है ?
नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 उपधारा 4 क्या है ? सरफेसी अधिनियम 2002 जिसका सम्बन्ध वित्तीय संस्थाओं से है , यह वित्तीय संस्थाओं को एक गैर निष्पादित परिसंपत्ति (NPA- Non Performing Assets ) की वसूली करने के लिए शक्ति प्रदान करता है। यह सरफेसी अधिनियम 2002 बैंक व् अन्य वित्तीय संस्थाओं में ऋण लेने के बाद ऋण का भुगतान समय पर न कर पाने पर डिफ़ॉल्ट की श्रेणी में आने वाले डिफॉल्टेरों से ऋण वसूली और गैर निष्पादित परिसम्पत्तियों (NPA) के स्तर को नियंत्रण कर कम करने में सहायक है , क्योंकि इस अधिनियम के प्रावधान ही ऐसे है।
क्या बैंक या वित्तीय संस्था लोन की धनराशि की वसूली के लिए गिरवी रखी गयी संपत्ति पर कब्ज़ा कर विक्रय , निलाम या लीस पर दे सकते है ?
सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 उपधारा 4 को लेकर कई सवाल उठ रहे होंगे जैसे कि :-
- सरफेसी अधिनियम 2002 क्या है ?
- सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 उपधारा 4 क्या है ?
- सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 उपधारा 4 का उद्देश्य क्या है ?
इन सवालों को विस्तार से समझें।
1. सरफेसी अधिनियम 2002 क्या है ?
सरफेसी अधिनियम 2002 बैंक व् अन्य वित्तीय संथाओं के लिए एक ऐसा महत्वपूर्ण अधिनियम है , जो कि भारतीय बैंक और अन्य वित्तीय संथाओं से उधार लेने वाले व्यक्तियों के द्वारा एक नियमित समयवधि के भीतर ॠण के रूप में ली गयी धनराशि का भुगतान नहीं कर पाने के कारण ॠण डिफ़ॉल्ट की श्रेणी में आते है , ऐसे व्यक्तियों से ऋण की धनराशि कि वसूली के लिए न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना ऋण डिफॉल्टेरों की परिसम्पत्तियों को जब्त करने बेचने व् नीलाम करने की अनुमति प्रदान करता है।
सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 20 के अंतर्गत एक केंद्रीय रजिस्ट्री के गठन का प्रावधान है जिसके अनुसार CERSAI (Central Registry of Securitisation Asset Reconstruction and Security Interest) "प्रतिभूतिकरण, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण और प्रतिभूति हित की केंद्रीय रजिस्ट्री " का गठन किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य यह है कि एक ही संपत्ति पर कई लोन लेने की धोखाधड़ी पर रोकथाम लगाना।
CERSAI एक ऐसी ऑनलाइन प्लेटफार्म है जहाँ लोन लेने के लिए गिरवी रखी गई सम्पत्तियों का पंजीकरण किया जाता है, इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता लाना और धोखाधड़ी की रोकथाम।
2. सरफेसी अधिनियम 2002 की धरा 13 (4 ) क्या है ?
सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 (4 ) बैंक व् वित्तीय संस्थाओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्व है , क्योंकि इस धारा के तहत बैंक व् वित्तीय संस्था जो कि ऋण लेने वालो को ऋण प्रदान कर उनकी अवश्यकताओं को पूर्ण करती है , तो ऋण के सुरक्षात्मक उपायों के लिए व् निर्धारित समयवधि के बाद ऋण की वसूली के लिए इस धारा के प्रावधानों का उपयोग करती है।
सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 (4 ) बैंक व् वित्तीय संस्थाओं को उनके द्वारा दिए गए ऋण की वसूली करने के उपाय प्रदान करती है , जिसके तहत यदि उधार लेने वाला जिसे बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा ऋण की पूर्ति की गयी है , उस ऋण के प्रति लेनदार द्वारा अपने दायित्वों का पालन नहीं किया जा रहा है , तो बैंक या वित्तीय संस्था जिसने ऋण दिया है , वह लेनदार को उस ऋण के दायित्वों का पालन करने लिए लिखित सूचना देगी और अपेक्षा करते हुए-की पालन किया जायेगा। यदि सूचना देने की तारीख से 60 दिनों के भीतर लेनदार अपने दायित्वों का पूर्णतः पालन करने में असफल रहता है , तो ऋण प्रदान करने वाली वित्तीय संस्था ऋण की वसूली के लिए निम्नलिखित में से एक या अधिक उपाय कर सकेगी :-
क -उधार लेने वाले की प्रतिभूत आस्तियों का कब्ज़ा लेना जिसके अंतर्गत प्रतिभूत आस्ति की वसूली के लिए पट्टा समनुदेश या विक्रय अंतरण अधिकार भी है,
ख -उधर लेने वाले के कारबार का प्रबंध ग्रहण करना , जिसके अंतर्गत प्रतिभूत आस्ती की वसूली के लिए पट्टा समनुदेश या विक्रय द्वारा अंतरण का भी अधिकार है,
परंतु पट्टे का समनुदेश या विक्रय द्वारा अंतरण के अधिकार का केवल वही प्रयोग जायेगा जहां उधार लेने वाले के कारबार का महत्वपूर्ण भाग ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में धारित किया गया है ,
परन्तु यह और कि जहां सम्पूर्ण करबार या करबार के भाग का प्रबंध पृथक्कीकरण है म वहां प्रतिभूत लेनदार, उधार लेने वाले के ऐसे करबार का जो ऋण के लिए प्रतिभूति से सम्बंधित है प्रबंध ग्रहण करेगा।
ग - प्रतिभूति आस्तियों , जिसका कब्ज़ा प्रतिभूत लेनदार द्वारा ग्रहण किया गया है , ऐसी आस्ति का प्रबंध करने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करना।
घ - ऐसे किसी व्यक्ति जिसने उधार लेने वाले से किन्ही प्रतिभूत आस्तियों का अर्जन किया है और जिससे कोई धन शोध्य ुशार लेने वाले को शोध्य हो सकता है, लिखित में सूचना द्वारा किसी भी समय उतने धन का प्रतिभूत लेनदार को संदाय किये जाने की अपेक्षा करना जो प्रतिभूत ऋण के संदाय के लिए पर्याप्त हो।
3. सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 (4 ) का उद्देश्य क्या है ?
सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 13 (4 ) का उद्देश्य निम्न प्रकार से है :-
- बैंक व् वित्तीय संस्थाओं को एक उचित कानूनी उपाय प्रदान करना जिसके अनुसार न्यायालय जाये बिना अपने ऋण की वसूली कर सकना,
- उधार लेने वाले व्यक्ति द्वारा अपने दायित्वों का पालन न करने पर ऐसे दायित्वों को स्मरण कराने के लिए लिखित सूचना देना , लिखित सूचना के दिए जाने के 60 दिनों के भीतर पालन न करने पर अधिनियम के अनुसार बताये गए उपायों से लोन की धनराशि की वसूली करना।
- उधार लेने वाले व्यक्ति की उधार लेने के समय गिरवी रखी गयी संपत्ति का कब्ज़ा लेना, वसूली के लिए विक्रय , नीलम या लीस पर देना।
- बैंक व् वित्तीय संस्थाओं को न्यायिक कार्रवाहियों से दूर रखने का प्रयास।
- NPA (Non Performing Asset ) को कम करने में सहायक है साथ ही क्रेडिट बढ़ाने में वित्तीय संस्थाओं का आत्मविश्वास बढ़ाता है।
- उधार लेने वालो को उनकी संपत्ति का कब्ज़ा ,नीलामी , विक्रय और लीस जैसी गंभीर परिणामों से बचने के लिए याद दिलाता है।
- उधार लेने वाले व्यक्ति समय पर अपने ऋण का भुगतान कर सकने का उनके इस प्रोत्साहन को बनाये रखना। उधार लेने वाला व्यक्ति अपने ऋण को रेस्ट्रक्चरिंग करने या उधार देने वाली वित्तीय संस्था के साथ नई शर्तों पर बातचीत करने के विकल्प को प्रेरित करता है।
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