भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और संविधान के तहत गिरफ्तार हुए व्यक्ति के अधिकार क्या है ? Right of arrested person under bnss and constitution
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नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और संविधान के तहत गिरफ्तार हुए व्यक्ति के अधिकार क्या है ?
भारतीय संविधान जिसमे सबसे खास बात है कि वह मौलिक अधिकार जन्म से प्रदान करता है , इसमें कुछ अधिकार गैर भारतीय को भी प्राप्त है। संविधान कि अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार प्रदान करता है जिसमे कानून के समक्ष समानता का उल्लेख किया गया है।
ऐसे व्यक्ति जो असंवैधानिक या गैरकानूनी कार्य करते है या करते हुए पाए जाते है या शामिल होते है , तो पुलिस अधिकारी स्वयं या सूचना पर ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करती है , ताकि उसके द्वारा किये गए कार्य को जो कि गैर कानूनी और असंवैधानिक है , उसको रोका जा सके।
ऐसे में गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को संविधान के तहत कुछ अधिकार प्रदान किये गए , ताकि उन्हें शोषण से बचाया जा सके , ऐसा इस लिए कि उन्हें अपने अधिकार नहीं मालूम होने तो उन्हें सुनने का मौका कहाँ मिलेगा , संविधान और कानून दोनों अपराध करने वाले और पीड़ित दोनों को सुनने का मौका प्रदान करते है। एक को अपने बचाव जे लिए दूसरे को दोष सिद्ध करने के लिए।
भारत में गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकार - भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता व् भारतीय संविधान के तहत
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 व् भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किये गए उन अधिकारों के बारें में बात करने जा रहा हूँ जो कि गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को प्राप्त है। इन अधिकारों को गिरफ्तार हुए व्यक्ति को जानना अति आवश्यक है।
1. भारतीय संविधान द्वारा प्राप्त गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार।
1. गिरफ़्तारी के आधार जानने का अधिकार।
भरतीय संविधान अनुच्छेद 22 के तहत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को यह अधिकार है की वह किस अपराध के किये जाने के लिए पुलिस अधिकारी द्वार गिरफ्तार किया जा रहा है या किया गया है। संविधान का यह अनुच्छेद व्यक्ति को अधिकार प्रदान करता है की वह गिरफ़्तारी के उन कारणों को जाने जिन कारण से पुलिस अधिकारी व्यक्ति को गिरफ्तार कर रही है।
लेकिन अनुच्छेद 22 के तहत गिरफ़्तारी के अधिकार जानने का अधिकार व् अपने पसंद का अधिवक्ता नियुक्त करने का अधिकार इन व्यक्तियों को नहीं प्राप्त होगा :-
- विदेशी दुश्मन है,
- निवारक निरोध का उपबंध करने वाले किसी कानों के तहत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है।
2. मौन /शांत रहने का अधिकार।
भारतीय संविधान अनुच्छेद 20 (3 ) के तहत मौन / शांत रहने का अधिकार पप्राप्त है , जिसके तहत किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के लिए उससे स्वयं के खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा। व्यक्ति को अपने स्वयं के लिए अपने खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जायेगा।
अनुच्छेद 20 (3 ) मौन रहने के अधिकार के तहत अभियुक्त को संरक्षण प्रदान करता है कि :-
- आत्म - दोषसिद्धि से संरक्षण।
- स्वयं गवाह बनने से मुक्ति।
- बाध्यता से मुक्ति।
3.निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार।
भारतीय संविधान अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार से सम्बंधित है जिसके तहत विधि के समक्ष समानता और विधियों के सामान संरक्षण प्रदान करता है। राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं करेगा और न ही भारत के क्षेत्र में कानून के सामान संरक्ष्ण से वंचित करेगा।
कानून की नजर में सभी व्यक्ति के साथ एक सामान व्यव्हार किया जाना चाहिए न की जाति, लिंग, जन्म स्थान या लिंग के आधार पर भेद भाव किया जाये।
4.परामर्श और कानूनी सहायता का अधिकार।,
- भारतीय संविधान अनुच्छेद 22(1) कुछ मामलों में गिरफ़्तारी और हिरासत के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है यह सुनिश्चित करती है कि गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को जल्द से जल्द उसकी गिरफ़्तारी के कारन बताये जाये बिना कारन बताये उस व्यक्ति को हिरासत में न रखा जाये और साथ ही उसे अपने पसंद के कानूनी व्यवसायी से यानी अपने पसंद के अधिवक्ता से परामर्श करने का अधिकार है।
- भारतीय संविधान अनुच्छेद 39 क समान न्याय और निशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने के अधिकार के सम्बन्ध में , ताकि कोई भी नागरिक निर्धनता या अन्य निर्योग्यता के कारण न्याय प्राप्त करने से वंचित न रह जाये। राज्य यह सुनिश्चित करे की विधिक तंत्र इस प्रकार से कार्य करे की कोई भी नागरिक आर्थिक या अन्य निर्योग्यता के कारण न्याय पाने से वंचित न रह जाये इसके लिए उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करें।
5. 24 घण्टे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होना।
भारतीय संविधान अनुच्छेद 22 (2 ) के तहत प्रत्येक व्यक्ति जो पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में रखा गया है , ऐसे व्यक्ति को 24 घण्टे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जायेगा और किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना 24 घण्टे की अवधि से अधिक हिरासत में नहीं रखा जायेगा।
24 घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर करने की इस अवधि में वह अवधि नहीं जोड़ी जाएगी जो कि गिरफ़्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के दौरान लगी है।
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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार।
1. गिरफ़्तारी के आधार जानने का अधिकार।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 47 गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को गिरफ़्तारी के अधरों और जमानत के अधिकार की सूचना दिए जाने का प्रावधान करती है , जिसके तहत बिना वारंट के पुलिस अधिकारी या अन्य कोई व्यक्ति जो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर रहा है , गिरफ्तार किये गए उस व्यक्ति को उसकी गिरफ़्तारी के कारण बताना होगा कि उसे किस अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। और जमानतीय अपराध में गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को सूचना देगा कि वह जमानत पर छोड़े जाने का हक़दार है और वह अपनी और से प्रतिभूओं का इंतजाम करें।
2. गिरफ़्तारी की सूचना का अधिकार।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 48 गिरफ़्तारी करने वाले व्यक्ति की गिरफ़्तारी आदि के बारे में नातेदार या मित्र को जानकारी देने की बाध्यता के सम्बन्ध में प्रावधान करती है। इस संहिता के अधीन कोई गिरफ़्तारी करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति , ऐसे गिरफ़्तारी और उस स्थान के बारें में जहाँ गिरफ्तार किया गया व्यक्ति रखा गया गया है इसकी जानकारी उसके नातेदार , मित्र या ऐसे अन्य व्यक्ति को जिसे गिरफ्तार किये गए व्यक्ति द्वारा ऐसे जानकारी देने के लिए उसका नाम बताया गया हो तथा जिले में पदाभिहित पुलिस अधिकारी को भी तुरंत सूचना देगा।
3.परामर्श और कानूनी सहायता का अधिकार।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 341 के तहत कुछ मामलों में अभियुक्त को राज्य के व्यय पर विधिक सहायता प्रदान किये जाने का प्रावधान करती है। जहाँ न्यायालय के समक्ष किसी विचारण या अपील में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किसी अधिवक्ता द्वार नहीं किया जाता है और वहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त के पास अधिवक्ता नियुक्त करने के लिए प्रयाप्त धन नहीं है तो ववहाँ न्यायालय उसकी प्रतिरक्षा के लिए राज्य के खर्चे पर अधिवक्ता नियत करेगा।
4. विलम्ब के बिना मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के भारसाधक के समक्ष हाजिर होना।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 57 के तहत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति का मजिस्ट्रेट या पुलिस ठाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जाया जाना के सम्बन्ध में प्रावधान करता है। जहाँ कोई गिरफ़्तारी पुलिस अधिकारी द्वारा बिना वारंट के की जाती है ऐसे गिरफ़्तारी करने वाला पुलिस अधिकारी आवश्यक देरी के बिना और जमानत के सम्बन्ध में इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए उस व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है उस मामले में अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष या किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जाया जायेगा या भेजगा।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 58 के तहत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक निरुद्ध नहीं किया जायेगा।
5. मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा जाँच का अधिकार।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 53 के तहत गिरफ्तार व्यक्ति की चिकित्सा अधिकारी द्वारा परीक्षा का प्रावधान करती है। जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है, तब गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को उसकी गिरफ़्तारी के तुरंत बाद उसकी केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार की सेवा के अधीन चिकित्सा अधिकारी द्वारा और जहाँ चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं है , वहां रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा - व्यव्यसायी द्वारा परीक्षा की जाएगी।
जहाँ गिरफ़्तारी किसी महिला की हो वहां उसके शरीर की चिकित्सा परीक्षा केवल महिला चिकत्सा अधिकारी द्वारा होगा और जहाँ महिला चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं है वहां रजिस्ट्रीकृत महिला चिकित्सा - व्यवसायी द्वारा या उसके पर्यवेक्षण के अधीन की जाएगी।
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