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संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय क्या है, विक्रय के आवश्यक तत्व क्या है और क्रेता और विक्रेता के दायित्व और अधिकार क्या है ?

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नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में आप सभी को " संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय क्या है, विक्रय के आवश्यक तत्व क्या है और क्रेता और विक्रेता के दायित्व और अधिकार क्या है ? इन सभी के बारे में विस्तार से बताने वाला हु। 
what is sale essential element of sale liabilities and right of seller and buyer under transfer of property act 1882` LLB note in Hindi

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय क्या है ?

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 54 विक्रय को परिभाषित करती है जिसके अंतर्गत किसी अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण जिसके बदले में एक ऐसी कीमत जो दी जा चुकी हो या दी जानी है या जिसके दिये जाने का वचन किया गया हो या जिसका कोई भाग दे दिया गया हो या और कसी भाग के देने का वचन किया गया हो विक्रय कहलायेगा। 

विक्रय कैसे किया जाता है ?
अधिनियम की धारा 54 में विक्रय कैसे किया जाता है इसका तरीका बताया गया है जिसके अंतर्गत जहाँ एक ऐसा अंतरण 100 रूपये या अधिक के मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति की दशा में या किसी उत्तर -भोग या अन्य अमूर्त वस्तु की दशा में विक्रय केवल रेजिस्ट्रीकृत लिखित द्वारा किया जाता है। 

100 रूपये  की मूर्त अचल संपत्ति की दशा में विक्रय का ऐसा अंतरण या तो रेजिस्ट्रीकृत लिखित द्वारा या संपत्ति के परिदान द्वारा किया जा सकेगा। 

मूर्त अचल संपत्ति का परिदान तब हो जाता है जब विक्रेता द्वारा क्रेता या क्रेता द्वारा बताये गए व्यक्ति का संपत्ति पर कब्ज़ा करा देता है। 

विक्रय के लिए संविदा।
 अचल संपत्ति की विक्रय संविदा वह संविदा है जिसके अंतर्गत उस अचल संपत्ति का विक्रय पक्षकारो के बीच हुए शर्तो पर होगा। 

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय के आवश्यक तत्व क्या है ?

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय के आवश्यक तत्वों का उल्लेख किया गया है जो की निम्न है :-
  1.  पक्षकार। 
  2. विषय वस्तु।
  3. कीमत या प्रतिफल। 
  4. स्वामित्व का अंतरण।  
इन सभी विस्तार से समझे ताकि विक्रय के आवश्यक तत्वों के जानकारी अच्छे से हो सके। 

1. पक्षकार - विक्रय का प्रथम प्रमुख आवश्यक तत्व उसके पक्षकार होते है क्योकि प्रत्येक विक्रय तभी पूर्ण होगा जब उसमे दो पक्षकार होंगे जिसमे एक पक्ष क्रेता व् दूसरा पक्ष विक्रेता। 
  1. क्रेता। 
  2. विक्रेता। 
1. क्रेता - क्रेता वह व्यक्ति होता है , जो किसी वस्तु या संपत्ति की उसकी निश्चित कीमत देकर कर खरीदता है। वस्तु या संपत्ति की कीमत देने के बाद वह उस वस्तु व् संपत्ति का स्वामी बन जाता है और उस वस्तु व् संपत्ति के सभी अधिकार उसके पास होते है। 
क्रेता को किसी वस्तु या संपत्ति खरीदने के लिए उसकी वित्तीय क्षमता का होना अति आवश्यक होता है अर्थात क्रेता जो वस्तु या संपत्ति अपनी मर्जी से खरीदता है या खरीदने की इच्छा रखता है क्या उसके पास उतना पर्यात्प धन है कि वह उस वस्तु या संपत्ति का वास्तविक मूल्य का भुगतान कर सके या भुगतान करने में सक्षम है। 

2. विक्रेता - विक्रेता वह व्यक्ति होता है जो किसी वस्तु या संपत्ति को जो उसके अधिकार व् स्वामित्व में होती है उसको बेचता है और उसके बदले में प्रतिफल के रूप में धन प्राप्त करता है। विक्रेता जिस वस्तु या संपत्ति का अंतरण या बिक्री करेगा या करता है उस वस्तु व् संपत्ति में उसका विधक अधिकार होना चाहिए और विक्रय संविदा करने में सक्षम होना चाहिए। 

2. विक्रय की विषय वस्तु - विक्रय का दूसरा आवश्यक तत्व विक्रय की विषय वस्तु जिसका विक्रय या अंतरण किया जा सके। ऐसी अचल संपत्ति जो पहचाने जाने योग्य हो जिसको देखकर यह मालूम किया जा सके कि किस अचल संपत्ति का विक्रय होना है। किसी अचल संपत्ति की पहचान करने के कई तरीके है उनमे से एक संपत्ति की चौहद्दी से उस अचल संपत्ति को पेचानना आसान होगा।  यहाँ चौहद्दी से आशय उस संपत्ति की दिशाओं से है जैसे :-
  1. उत्तर,
  2. दक्षिण,
  3. पूरब ,
  4. पश्चिम दिशा इन चारो दिशा में संपत्ति के आस पास क्या है। 
3. कीमत या प्रतिफल - विक्रय का तीसरा आवश्यक तत्व कीमत या प्रतिफल है। अचल संपत्ति के विक्रय होने से पहले मूल्य का निर्धारण होना अति आवश्यक है। अब किसी अचल संपत्ति के मूल्य का निर्धारण कैसे हो उसके कई घटक हो सकते है जो की निम्न है :-
  1. अचल संपत्ति का मूल्य,
  2. पंजीकरण मूल्य,
  3. अन्य। 
4. स्वामित्व का अंतरण - विक्रय का चौथा आवश्यक तत्व अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण जिसके अंतर्गत विक्रेता द्वारा क्रेता के पक्ष में अचल संपत्ति का अंतरण कर दिया जाये। अधिनियम की धारा 54 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि विक्रय कैसे किया जाता है जिसमे संपत्ति के अंतरण का जिक्र किया गया है जिसके तहत संपत्ति का अंतरण दो तरह से किया जा सकता है। 
  1. रेजिस्ट्रीकृत लिखित विक्रय विलेख। 
  2. संपत्ति के अंतरण द्वारा। 
1. रेजिस्ट्रीकृत लिखित विक्रय विलेख  - ऐसा अंतरण जहाँ 100 रूपये या उससे अधिक के मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति की दशा में या किसी उत्तर -भोग या अन्य अमूर्त वस्तु की दशा में विक्रय केवल रजिस्ट्रीकृत लिखित द्वारा ही किया जायेगा। अचल संपत्ति के विक्रय पूर्ण करने के लिए उसका पंजीकरण होना अति आवश्यक है। 
मूर्त संपत्ति से आशय उस संपत्ति से जिसका भौतिक रूप से अंतरण संभव हो जैसे :-मोटर साइकिल, कार, जीप, स्कूटर, साइकिल आदि। 

2. संपत्ति के परिदान द्वारा - जहाँ विक्रय की गयी मूर्त अचल संपत्ति का मूल्य 100 रूपये से कम उस दशा में ऐसा अंतरण या तो रजिस्ट्रीकृत लिखित द्वारा किया जायेगा या संपत्ति के परिदान द्वारा किया जायेगा। मूर्त अचल सम्पति का परिदान तब हो जाता है जब विक्रेता द्वारा क्रेता या क्रेता द्वारा बताये गए व्यक्ति को उस संपत्ति पर कब्ज़ा करा देता है। 

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत क्रेता और विक्रेता के दायित्व व् अधिकार क्या है ?

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 55 के तहत संविदा न हो तो अचल संपत्ति के क्रेता और विक्रेता के कुछ दायित्व व् अधिकार होंगे जो कि निम्न है :-

1. अधिनियम की धारा 55 उपधारा 1 के तहत विक्रेता का दायित्व होगा जिससे वह बाध्य है कि वह :-
  1. विक्रय की जाने वाली संपत्ति या विक्रेता उस संपत्ति पर के हक़ में किसी ऐसी तात्विक कमी हो जिसे विक्रेता जनता हो और क्रेता नहीं जनता हो और ऐस कमी का पता क्रेता द्वारा मामूल सावधानी से नहीं लगाया जा सकता था, तो ऐसे में विक्रेता दायित्व है की वह उस तात्विक कमी को क्रेता के समक्ष प्रकट करे,
  2. विक्रय की संपत्ति से सम्बंधित हक़ के दस्तावेज जो कि विक्रेता के कब्जे या शक्ति में हो, उन सभी दस्तावेजों को क्रेता के द्वारा प्रार्थना करने पर परीक्षा करने के लिए पेश करे ,
  3. विक्रय संपत्ति या उस संपत्ति के हक़ के बारे में क्रेता द्वारा पूछे गए सभी सुसंगत सवालों के जवाब विक्रेता अपनी पूर्ण जानकारी के आधार पर दे यह उसका दायित्व है और बाध्य भी है,
  4. विक्रय संपत्ति की कीमत के सम्बन्ध में भुगतान या निविदा पर संपत्ति का उचित हस्तांतरण पत्र निष्पादित करे जबकि क्रेता उसे उचित समय और स्थान पर निष्पादित के लिए  विक्रेता को निविदत्त करे ,
  5. विक्रय संविदा और उस विक्रय संपत्ति के परिदान की तारीखों के बेच उस सम्पाती को और उस संपत्ति पर के हक़ सम्बंधित सभी दस्तावेजों को, जो विक्रेता के कब्जे में हो, ऐसी सावधानी से संभाल कर रखे जैसे मामूली विवेक वाला स्वामी ऐसी संपत्ति और दस्तावेजों को रखता,
  6. ऐसे  मांग किये जाने पर  क्रेता या उसके द्वारा निर्देशित किये गए ऐसे व्यक्ति को उस संपत्ति पर कब्ज़ा दे जैसा संपत्ति को प्रकृति के अनुसार दिया जा सकता है,
  7. संपत्ति पर विक्रय की तारीख तक सभी सार्वजानिक शुल्कों और किराये को, ऐसी संपत्ति पर सभी भर के ब्याज को जो ऐसी तारीख को देय हो सभी का भुगतान और सिवाय उस दशा में जहाँ की संपत्ति भार के अधीन बेचीं गयी हो संपत्ति पर उस समय वर्तमान सब भारों को मुक्त कर दे। 
2. अधिनियम की धारा 55 उपधारा 4 के तहत विक्रेता के अधिकार :-
  1. जब तक विक्रय संपत्ति का स्वामित्व क्रेता के पास नहीं चला जाता तब तक उस संपत्ति के किराये और लाभों का हक़दार विक्रेता होगा,
  2. जहाँ कि संपत्ति का स्वामित्व पूरा क्रय धन दिए जाने से पहले क्रेता को दे दिया है, वहाँ क्रय धन की कीमत या उसके भुगतान न किये गए शेष भाग के लिए उस तारीख से, जिनको कब्ज़ा परिदान किया गया है , ऐसी कीमत या भाग पर ब्याज के लिए क्रेता या किसी भी अप्रतिफ़ल अंतरिती या क्रय धन के भुगतान न किये जाने की सूचना रखने वाले किसी अंतरिती के हाथ में उस संपत्ति के भार का विक्रेता हक़दार होगा। 
3. अधिनियम की धारा 55 उपधारा 5 के तहत क्रेता के दायित्व निम्न होंगे :-
  1.  संपत्ति में विक्रेता के हित की प्रकृति या विस्तार के बारे में ऐसा तथ्य, जिसे करता जानता है लेकिन जिसे उसके पास वह विश्वास करने का कारण है कि  विक्रेता नहीं जानता है और जिससे ऐसे हित के मूल्य में तात्विक वृद्धि होती है, तो क्रेता का यह दायित्व है कि विक्रेता को इसकी जानकारी प्रकट करे,
  2. विक्रय के पूरा होने के समय और स्थान पर विक्रेता या उसके द्वारा भेजे गए व्यक्ति को क्रय धन का भुगतान क्रेता करे लेकिन जहाँ कि संपत्ति भार से मुक्त बेचीं जाती है, वहां विक्रय की तारीख पर संपत्ति पर वर्तमान किन्ही भार की कीमत क्रेता धन में से रख सकेगा और इस प्रकार रखी गयी रकम का भुगतान उन व्यक्तियों को करेगा जो उसके लिए हक़दार है ,
  3. जहाँ कि संपत्ति का स्वामित्व क्रेता को दे दिया गया है, वहाँ संपत्ति के ऐसे नाश, क्षति या मूल्य में ऐसी गिरावट से, जो विक्रेता द्वारा कारित न हो, उत्पन्न किसी हानि को क्रेता सहेजा,
  4. जहाँ कि संपत्ति का स्वामित्व क्रेता को दे दिया गया है वहाँ, जहाँ तक कि क्रेता और विक्रेता के बीच का सम्बन्ध है वे सब सार्वजानिक शुल्कों और किराये जो उस सम्पति के बारे में हो देय हो जाये और जिन किन्ही भार में अधीन संपत्ति बेचीं गयी है उन मूलधन और उन  पर उसके बाद  ब्याज दे ,
4. अधिनियम की धारा 55 उपधारा 6 के तहत क्रेता के अधिकार निम्न होंगे :-
  1. जहाँ कि संपत्ति का स्वामित्व क्रेता को मिल गया है, वहाँ संपत्ति में हुई किसी वृद्धि का या उस संपत्ति के मूल्य में हुई वृद्धि का फायदा उठाने और उसके किरायों और लाभों का क्रेता हक़दार होगा,
  2. जब तक कि क्रेता ने संपत्ति का परिदान प्राप्त करने से अनुचित रूप से इंकार न कर दिया हो, विक्रेता और उससे प्राप्त अधिकाराधीन दावा करने वाले सब व्यक्तियों के विरुद्ध संपत्ति में विक्रेता के हित के विस्तार तक किसी क्रय धन की उस कीमत का, जो क्रेता ने परिदान से पहले पूर्वानुमान रूप से दे दी हो और ऐसी कीमत पर ब्याज का भार उस संपत्ति पर डालने का हक़दार होगा तथा जबकि उसने परिदान प्राप्त करने के लिए उचित रूप से इंकार कर दिया हो तब अग्रिम धन का भी यदि कोई हो, भार और संविदा का विशेष पालन कराने के लिए या  डिक्री प्राप्त करने के वाद के उसके पक्ष में  अधिनिर्णीत खर्च का भी यदि कोई हो तो भार उस संपत्ति पर डालने का हक़दार होगा। 

2 comments:

  1. सर अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे के चौहद्दी दिखाकर हड़पने के नीयत से रजिस्ट्री करा लेता है तो ऐसी स्थिति में क्या क्रेता पर 419,420 फ्रॉड केस लग सकता हैं

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