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संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 के तहत बंधक, आवश्यक तत्व और बंधक के प्रकार

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नमस्कार मित्रों, 
आज के इस लेख में आप सभी को " संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 - संपत्ति के बंधक " के बारे में बताने जा रहे है।

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संपत्ति के बंधक के बारे में आप सभी को मालूम होना चाहिए खास कर लॉ की पढ़ाई कर रहे छात्रों को, क्योकि सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 के अनुसार सम्पति के बंधक से सम्बंधित प्रश्न पूछे ही जाते है। 
  1.  संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत बंधक क्या है ?
  2. संपत्ति अंतरण अधिनियम बंधक के तह आवश्यक तत्व क्या है ?
  3. संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत बंधक के प्रकार ?
उपरोक्त इन सभी सवालों के जवाब के बारे में विस्तार से जाने। 

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत बंधक की परिभाषा क्या है ?

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 क के तहत बंधक को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार बंधक का अर्थ है कि किसी विशिष्ट अचल संपत्ति में के किसी हित का वह अंतरण है, जो उधार के तौर पर दिए गए या दिए जाने वाले धन के भुगतान को या वर्तमान या भावी ऋण के भुगतान को या ऐसे वचनबंध  जिसमे धन सम्बन्धी दायित्व पैदा हो सकता है, ऐसे धन को सुरक्षित करने के उद्देश्य से किया संपत्ति का अंतरण बंधक कहा जाता है 
इसको और सरल भाषा में समझे। 
जब किसी व्यक्ति को धन की आवश्यकता होती है, तो साधारणतः प्रत्येक जरूरत मंद व्यक्ति बैंक से लोन प्राप्ति के लिए आवेदन करता है, आवश्यकता के अनुसार उचित कारण के आधार पर बैंक लोन की मंजूरी कर देती है। अब सीधी बात है कि जब बैंक लोन के तौर पर धनराशि देगी तो वह उस धन की प्रतिभूति के लिए किसी संपत्ति को गरीवी रखने के लिए कहेगी, उधार धनराशि के बदले में  किसी विशिष्ट संपत्ति का अंतरण कर बैंक को गिरवी रखते है, तो कहा जाता है की संपत्ति को बैंक के पास बंधक रखा है। उस समय तक के लिए जब तक ऋण  की धनराशि का भुगतान नहीं हो जाता है।  

सम्पति अंतरण अधिनियम के तहत बंधक के आवश्यक तत्व क्या है ?

एक वैद्य बंधक के लिए निम्न तत्वों का होना अनवार्य है, यदि इसमें से एक भी तत्व शामिल नहीं है, तो वह बंधक वैद्य बंधक नहीं कहा जायेगा। 

1. बंधकर्ता एवं बंधकदार - हर एक बंधक में दो पक्ष का होना अनिवार्य क्योकि इसमें एक पक्ष बन्धककर्ता एवं दूसरा पक्ष बन्धकदार होता है। बन्धककर्ता वह व्यक्ति है जो कर्ज लेता है और कर्ज की वापसी की प्रतिभूति (सिक्योरिटी) के रूप में अपनी किसी अचल संपत्ति को बंधक के रूप में छोड़कर किसी हित का अंतरण करता है।  बन्धकदार वह व्यक्ति है जो कर्ज देता है और जिसके पक्ष में कर्ज की वापसी हेतु प्रतिभूति के रूप में संपत्ति बंधक के रूप में अंतरित रहती है। 

2. अचल संपत्ति के हित का अंतरण होना अनिवार्य है -  हर एक बंधक में किसी न किसी अचल संपत्ति में किसी हित का अंतरण होना अनिवार्य है। हित के अंतरण का अर्थ यह है कि वह हित जो संपत्ति को बंधक करने वाले व्यक्ति को अंतरित हो जाता है, जो हित संपत्ति के स्वामी को होता है। लेकिन संपत्ति के बंधक होते हुए भी  उस संपत्ति में स्वामित्व और अधिपत्य का अधिकार बन्धककर्ता के पास बना रहता है। उस बंधक सपत्ति में बन्धकदार का अधिकार केवल एक अनुषांगिक अधिकार होता है इस अधिकार के अंतर्गत बन्धकदार के पास केवल संपत्ति में मात्र प्रवेश करने का अधिकार है जो की इस प्रकार होता है कि ॠण के उचित भुगतान को सुनिश्चित किया जा सके। 

3. अचल संपत्ति स्पष्ट एवं विशिष्ट होनी चाहिए - हर एक बंधक में किसी न किसी अचल संपत्ति का सपष्ट एवं विशेष रूप से बंधक विलेख में उल्लिखित किया जाना अनिवार्य है यह इसलिए की यह समझने और पहचानने में सपष्ट हो की संपत्ति कौन सी है और इसका स्वामी कौन है। जैसे कि बंधक विलेख में केवल इतना ही लिख दिया गया है कि "यह संपत्ति मेरी ", इस संपत्ति का मैं मालिक हु", यह मेरा मकान, दुकान, प्लाट है " तो यह स्पष्ट नहीं हो रहा किस संपत्ति का विवरण लिखा है।

बंधक विलेख में संपत्ति का विवरण कुछ इस प्रकार से लिखा हो जैसे कि " एक भवन/मकान संख्या सी -3432 जो पुलिस लाइन मार्ग पर पूरब दिशा में स्थित बन्धकदार का है जिसपर उसका कब्ज़ा है जिसके उत्तर किराना की दुकान, दक्षिण रोड पार होटल है व् पश्चिम राधे लाल का घर है। इस प्रकार के विवरण संपत्ति स्पष्ट रूप से मालूम होती है व् पहचाने जाने योग्य है। 

4. अंतरण का उदेश्य निम्न भुगतान को या करार के पालन को प्रतिभूति करना होता है - बंधक में किसी न किसी संपत्ति के अंतरण का उद्देश्य भुगतान को या करार के पालन को सुरक्षित करने के लिए होता है, जो कि निम्न हो सकते है -
  1. उधार दी गयी या दी जाने वाली धनराशि के भुगतान को सुरक्षित करने के उद्देश्य से संपत्ति का अंतरण,
  2. वर्तमान या भावी ऋण के भुगतान को सुरक्षित करने के उद्देश्य से संपत्ति का अंतरण,
  3. आर्थिक दायित्व उत्पन्न करने वाले करार का पालन करने के उद्देश्य से संपत्ति का अंतरण। 
5. बंधक धन - बंधक धन वह धन है, जो किसी सम्पति को प्रतिभूति के रूप में बनधकदार के पास बंधक के रूप में रखकर एक बंधक विलेख द्वारा प्राप्त किया गया धन बंधक धन कहलाता है। इस प्रकार के धन की प्रकृति ऋण / कर्ज की होती है। 

6. बंधक विलेख -  बंधक विलेख वह दस्तावेज है जिसके अंतर्गत ऐसा अंतरण प्रभावित होता है। 

संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत बंधक के प्रकार। 

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 में बंधक के कितने प्रकार के होते है, इसका उल्लेख किया गया है जो कि 
  1. सादा बंधक। 
  2. सशर्त विक्रय द्वारा बंधक। 
  3. भोग बंधक। 
  4. अंग्रेजी बंधक। 
  5. हक़ विलेख के निक्षेप द्वारा बंधक। 
  6. विलक्षण बंधक। 
उपरोक्त सभी प्रकार के बंधकों के बारे में विस्तार से जाने। 

1. सादा बन्धक - संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 ख के अनुसार सादा बंधक वह है, जहाँ बन्धककर्ता बंधक यानी गिरवी की गयी संपत्ति का कब्ज़ा प्रदान किये बिना बंधक धन चुकाने के लिए स्वयं अपने आपको बाध्य करता है और अभिव्यक्त रूप से या प्रत्यक्ष रूप से करार करता है कि अपनी संविदा अनुसार भुगतान करने में असफल रहने की दशा में बंधकी बंधक संपत्ति का विक्रय कराने का और विक्रय की आय को जहाँ तक वह आवश्यक बंधक -धन के भुगतान में उपयोग कराने का अधिकार होगा। ऐसे लेनदेन को सादा बंधक कहा जायेगा और बन्धकदार सादा बंधकदार कहलाता है।

सादा बंधक की निम्न आवश्यक तत्व है :-
  1. सादे बंधक में बंधक की गयी संपत्ति पर कब्ज़ा बन्दकर्ता को नहीं दिया जाता बल्कि संपत्ति पर बन्धकदार का ही कब्ज़ा बना रहता है। 
  2.  सादे बंधक में बंधक धन को वापस लेने की निजी जिम्मदेदार होती है।  जिम्मेदार चाहे स्पष्ट हो या विवक्षित। 
  3. सादे बंधक में बंधक विलेख में ही अतिरिक्त शर्त कर ली जाती है यदि दिए गए धन की वापसी में अफसलता की दशा में बंधक धन की वसूली बंधक संपत्ति के विक्रय से की जाएगी। 
  4. सादे बंधक की रजिस्ट्री आवश्यक है। 
2. सशर्त विक्रय द्वारा बंधक - संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 ग के अनुसार सशर्त विक्रय द्वारा बंधक वह है, जहाँ कि कोई बन्धककर्ता अपनी संपत्ति को इस शर्त पर बंधक करता है कि यदि किसी निर्धारित तिथि तक बंधक -धन  के भुगतान करने में असफल होता है या चूक जाती है तो बन्धक संपत्ति विक्रय हो जाएगी या इस शर्त पर कि बंधक -धन की भुगतान  किये जाने पर विक्रय शून्य हो जायेगा या इस शर्त पर कि बंधक-धन के भुगतान किये जाने पर संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति बेचने वाले व्यक्ति को वह संपत्ति अंतरित कर देगा। वहाँ ऐसे लेनदेन सशर्त विक्रय द्वारा बंधक कहलाता है।

लेकिन ऐसा कोई भी लेनदेन बंधक नहीं समझा जायेगा जब तक कि वह शर्त उस दस्तावेज में उल्लिखित न हो जिससे विक्रय किया गया या किया जाना अभिप्रेत होता है।

सशर्त विक्रय द्वारा बंधक के निम्न आवश्यक तत्व । 
  1. धारा 58 ग का उपबंध यह स्पष्ट बताता है कि यदि दस्तावेज में पुनः विक्रय की शर्त को सम्मिलित नहीं किया जाता है जो की विक्रय को प्रभावित या अभिप्रेत कर सकती है ऐसे लेने देन को बंधक नहीं समझा जा सकता है।  चुनचुन झा बनाम शेख इबादत अली।  
  2.  यदि निर्धारित तिथि के भीतर बंधक धन का भुगतान होने में असफलता होती है सम्पति विक्रय योग्य हो जाएगी।
  3. बंधक धन के भुगतान कर देने पर क्रेता वह संपत्ति विक्रेता को वापस कर देगा।  
  4. बंधक -पत्र में तिथि या अवधि का लिखित होना अनिवार्य है। 
  5. ऐसे बंधकों में बंधकनाम बंधकनामे के स्थान पर बैनामा किया जाता है। 
3. भोगबंधक- संपत्ति अंतरण अधिनियम धारा 58 घ  के अनुसार भोग बंधक, जहाँ कि बन्धककर्ता बंधक संपत्ति का कब्ज़ा बन्धकदार को प्रदान कर देता है या अभिव्यक्ति या विवक्षित रूप से संपत्ति का कब्ज़ा प्रदान करने के लिए अपने को बाध्य कर लेता है उसे अधिकृत करता है कि बंधक -धन के भुगतान किये जाने तक वह ऐसा कब्ज़ा धारण करे और उस संपत्ति से उत्पन्न लगान और लाभों को या ऐसे लगान और लाभों भाग  प्राप्त करे और उन्हें ब्याज के बदले या बंधक -धन के भुगतान में या भागतः ब्याज के बदले या भागतः बंधक के भुगतान में उपयोग कर ले।  वहां ऐसा लेनदेन भोगबंधक और बन्धकदार भोग बनधकदार कहलाता है। 

 भोगबन्धक के आवश्यक तत्व -
  1. बन्धककर्ता द्वारा बंधकदार को कब्ज़ा प्रदान कर दिया जाता है या बन्धकार्ता कब्ज़ा देने के लिए सहमत हो जाता है। 
  2. बन्धकदार बंधक संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं प्राप्त करता बल्कि बन्धककर्ता की तरफ से कब्ज़ा धारण करता है। 
  3. बन्धक कर्ता ऐसा कब्ज़ा तब तक के लिए देता है जब तक की बन्धकदार बंधक संपत्ति से बंधक-धन तथा ब्याज वसूल नहीं कर लेता  या जब तक बंधक -धन का भुगतान नहीं हो जाता है। 
  4. बन्धककर्ता न्यायालय की अनुमति के बिना बंधक संपत्ति न ही बेच सकता है और न ही बेचने के लिए वाद दायर कर सकता है। 
4.अंग्रेजी बंधक- संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 ड के अनुसार अंग्रेजी बंधक, जहां कि बन्धककर्ता  बंधक-धन को एक नियत तिथि को चुकाने के लिए अपने को बाध्य करता है और बंधक संपत्ति को बन्धकदार को पूर्ण रूप से अंतरित करता है परन्तु यह करार करता है की करार के अनुसार बंधक धन के भुगतान पर बन्धकदार उसे बन्धककर्ता के प्रति अंतरित कर देगा। वहां ऐसे लेनदेन को अंग्रेजी बंधक कहलाता है। 

अंग्रेजी बंधक के आवश्यक तत्व :-
  1. बन्धककर्ता को एक नियत तिथि के भीतर बंधक धन के भुगतान के लिए स्वयं को बाध्य कर लेना चाहिए।
  2. बंधक संपत्ति को पूर्ण रूप से बन्धकदार के नाम अंतरित कर देना चाहिए। 
  3. पूर्ण रूप से अंतरित इस शर्त के अनुसार किया जाना चाहिए कि नियत तिथि को बंधक धन के भुगतान हो जाने पर बन्धकदार उस संपत्ति को बन्धककर्ता के पास वापस कर देगा। 
5. हक़ विलेखों के जमा द्वारा बंधक -  संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 च के अनुसार हक़ विलेखों के जमा द्वारा बंधक, जहाँ कोई व्यक्ति कोलकाता, चेन्नई, मद्रास और मुंबई इन निम्नलिखित नगरों में से किसी में से है, जिसे संयुक्त राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस हेतु उल्लिखित करे, किसी लेनदार को या उसके प्रतिनिधि को अचल संपत्ति के हक़ के दस्तावेजों को , उस संपत्ति पर प्रतिभूति बनाने के इरादे से प्रदान करता है, वहाँ ऐसे लेनदेन को हक़ विलेखो के जमा द्वारा बंधक कहलाता है।

हक़ विलेखों के जमा द्वारा बंधक के आवश्यक तत्व :-
  1. इस बंधक की सुविधा केवल कोलकाता, मद्रास, चेन्नई और मुंबई नगरों में ही संभव है। 
  2. इस बंधक में न ही संपत्ति का कब्ज़ा दिया जाता है और न ही किसी हित को गिरवी रखा जाता है। 
  3. सामान्यतः ऐसे बंधक में कोई लिखा -पढ़ी आवश्यक नहीं होती है।  
  4. ऐसे बंधक में बन्धकदार में पूर्ण हित निहित हो जाने पर भी बन्धकदार स्वामी नहीं हो पाता। 
  5. जब तक संपत्ति का प्रकार जमानत के रूप में ही होगा तब तक अंतरिती ही बन्धकदार रहेगा। 
  6. इस प्रकार का बंधक तभी किया जाता है, जब व्यापारी समुदाय पर किसी कर्ज या अन्य  दायित्व के भुगतान का भार होता है। 
  7. बंधक किसी भी प्रकार के रूप में लिए गये कर्ज में सम्भव होगा चाहे कर्ज लिया जा रहा हो या लिया जा चूका है या एडवांस कर्ज लिया जाना हो या हिसाब से सामान्य पूर्ण के लिए कर्ज लिया जा रहा हो। 
  8. हक -विलेखों के जमा द्वारा बंधक में जहाँ विलेख स्टाम्पित एवं रजिस्ट्रीकृत नहीं हो, वह अविधिमान्य एवं अप्रवर्तनीय होगा। अर्थात हक़ विलेख का स्टाम्पित रजिस्ट्रीकृत होना अनिवार्य है।  
 6. विलक्षण बंधक - संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58 के अनुसार विलक्षण बंधक जो बंधक तो है लेकिन सादा बंधक,  सशर्त विक्रय द्वारा बंधक, भोग बंधक, अंग्रेजी बंधक या हक़ विलेख बंधक नहीं है वह बंधक विलक्षण बंधक कहलाता है। 
विलक्षण बंधक आवश्यक तत्व :-
  1.   वे सभी बंधक जो संपत्ति अंतरण अधिनियम धारा 58 क के अनुसार परिभाषा के अंतर्गत तो आते हो लेकिन उपरोक्त इन पांचों बंधक में से किसी एक में खरे उतरते हो।
  2. ऐसा बंधक जिसमे दो या अधिक बंधकों के आवश्यक तत्व मौजूद हो।  

2 comments:

  1. lease property par home loan ho uske bechne sambandhit niyam kya hain . buyer bhi loan par hi lena chahta hai to kis prkar bech sakte hai kanooni or vyavharik prkriya batayen

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    1. पहले ये मालूम करो की लोन कितना है ?
      लोन की कितनी किश्तें चुका दी गयी है व कितनी बाक़ी है ?
      जो व्यक्ति लोन पर ले रहा है वह किस बैंक से लेगा ?

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