lawyerguruji

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री क्या है-डिक्रीहोल्डर कौन होता है और डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है Decree-essential element of a decree and who is called decree-holder

www.lawyerguruji.com

नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को "सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(2 ) डिक्री और इसके आवश्यक तत्व क्या है इसके बारे में बताने जा रहा हु। 

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री क्या है ? 
डिक्री होल्डर कौन होता है ?
डिक्री कितने प्रकार की होती है ?
डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है ?

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री क्या है और डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है Decree-essential element of a decree and how decree can execute.


सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री क्या है ?
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(2) में शब्द डिक्री की परिभाषा दी गयी है, जिसके तहत डिक्री जिसको आज्ञप्ति कहा जाता है, डिक्री सामान्य रूप से किसी सक्षम न्यायालय द्वारा दिया गया वह निर्णय है जिसमे न्यायालय के निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति ( फॉर्मल एक्सप्रेशन ऑफ़ एडजुडिकेशन) होती है, जिसके अंतर्गत न्यायालय ने अपने समक्ष प्रस्तुत वाद में सभी या किन्ही विवादग्रस्त विषयों के सम्बन्ध में वाद के पक्षकारों के अधिकारों को निश्चायक रूप से निर्धारित किया है। 

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री के प्रकार 
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(2) तहत डिक्री के दो प्रकार बताये गए है, जो कि निम्न है 
  1. प्रारंभिक डिक्री (आज्ञप्ति) 
  2. अंतिम डिक्री  (आज्ञप्ति )
यह समझा जायेगा की इसके अंतर्गत वादपत्र का नामंजूर किया जाना और धारा 144 के अंतर्गत किसी प्रश्न का निर्धारण लेकिन इसके अंतर्गत न तो,
  1. न तो कोई ऐसा न्यायनिर्णय आएगा जिसकी अपील,आदेश की अपील की तरह होती है,
  2. न तो किसी भूल चूक के लिए ख़ारिज करने के आदेश आएगा। 
1. प्रारम्भिक आज्ञप्ति-  सिविल प्रक्रिया संहिता कि धारा  2 (2) के तहत प्रारंभिक आज्ञप्ति वह आज्ञप्ति है, जब वाद के पूर्ण रूप से निपटा दिए जा सकने से पहले आगे और कार्यवाही की जाती है,तो न्यायालय प्रारम्भिक आज्ञप्ति पास करती है। प्रारंभिक आज्ञप्ति के जरिये न्यायालय विवादग्रस्त मामले में से कुछ एक विषयों के सम्बन्ध में पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण करती है। लेकिन सभी अधिकारों का निर्धारण नहीं होता है। न्यायालय द्वारा प्रारंभिक डिक्री पास करने का यह मतलब नहीं होता की विवादग्रस्त मामले का पूर्ण रूप रूप से निपटारा कर दिया गया। 

प्रारम्भिक डिक्री न्यायालय द्वारा निम्न अधिकारों के निर्धारण के लिए पास की जा सकेगी जैसे की:-
  1. जहाँ वाद किसी एक फर्म की भागीदारी के विघटन के लिए या भागीदारी के लेखाओं के लिए न्यायालय में आता है, वहां न्यायालय अंतिम डिक्री पारित करने से पहले प्रारंभिक डिक्री पारित कर सकेगा जिसमे पक्षकारों के अनुपातिक अंशों को निर्धारित करती है। 
  2. मालिक और अभिकर्ता के मध्य लेखा के लिए लाये गए वाद में अंतिम डिक्री पारित करने से पहले प्रारंभिक डिक्री पारित कर सकेगा जिसमे ऐसे लेखाओं के लिए जाने का निदेश होगा जिन का लिया जाना वह ठीक समझे। 
  3. संपत्ति के विभाजन के लिए या उनमे के अंश पर पृथक कब्जे के लिए वाद में प्रारंभिक डिक्री पारित कर सकेगी। 
2. अंतिम आज्ञप्ति - सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(2) के तहत अंतिम डिक्री वह डिक्री है जो वाद को पूर्ण रूप से निपटा देती है। न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत वाद से सम्बंधित विवादित प्रश्नों का निपटारा पूर्ण एवं अंतिम रूप से कर दिया जाता है और उसके बाद उस वाद में कोई शेष कार्यवाही करने के लिए नहीं बची होती, तो ऐसे डिक्री अंतिम डिक्री कही जाएगी।  अंतिम डिक्री पारित करने के लिए यह आवश्यक नहीं कि प्रारंभिक डिक्री पारित की जाये। 

यदि किसी मामले में सक्षम न्यायालय द्वारा प्रारम्भिक डिक्री पारित की गयी है ,तो अंतिम डिक्री प्रारंभिक डिक्री के निर्देशों के अंतर्गत या प्रारम्भिक डिक्री के अनुसार पारित की जाती है। जिससे यह मालूम होता है कि अंतिम डिक्री प्रारम्भिक डिक्री पर मिर्भर होती है। 

यदि किसी अपील में प्रारम्भिक डिक्री निरस्त कर दी जाती है,तो अंतिम डिक्री अपनेआप शून्य हो जाती है। 

डिक्रीहोल्डर कौन होता है ?
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (3) में डिक्री-होल्डर जिसको आज्ञप्तिधारक कहा जाता है इसकी परिभाषा दी गयी है, जिसके अंतर्गत डिक्री-होल्डर एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पक्ष में न्यायालय द्वारा डिक्री पारित की गयी है, या न्यायालय द्वारा पारित किया गया ऐसा आदेश जो की निष्पादन योग्य है तथा जिसका नाम वाद अभिलेख में दर्ज है।  
डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है। 
सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री में निम्नलिखित आवश्यक तत्व है जैसे कि:-
  1. न्याय निर्णय,
  2. न्याय निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति,
  3. औपचारिक अभिव्यक्ति किसी वाद में हो,
  4. विवादग्रस्त सभी या किन्ही विषय-वस्तु के सम्बन्ध में अधिकारों का निर्धारण,
  5. वाद में निश्चायक निर्धारण। 

8 comments:

  1. 1974 की डिक्री के आधार पर नामांतरण हो सकता है

    ReplyDelete
  2. Sarkari jamin ka decree 1970 la hai.lagan nirdharan and motation hoga ya nahi

    ReplyDelete
    Replies
    1. किस चीज़ की डिक्री हुई ? डिक्री में क्या लिखा है ?

      Delete
  3. ek property jiske hamare pas paper nhi the..to mere dada or mere cacha ne aapas m case lda or court m case jeet gye mere dada..or dada ne mere chache ko trnsfer krdi..or nagar nigam m 1990 se phele vo kisi or ki thi...jiske hm malik nhi the agr mjhe us decree ko challenge krna ho to kya kru..because vo hamari property thi nhi ..ghar m game khel kr galat tareeko se apne naam karie gyi..

    ReplyDelete
  4. सर नमस्कार,मेरा भतिजा श्रंगार कि एक छोटी सी दुकान जोकि किराये कि है उसने कृषि कि दवाइयो के विक्रेता से 50000/-रुपये 3%. कि दर सेउधार लिये थे जो उसने चुका दिये थे जिसका गवाह भी है मगर उसका ब्याज 50000/- बन गया वह वो नही चुका सका उस उधार देने वाले ने 50000/-कि रसीद अपने नौकर से उधार लेना बताकर दस्तखत करवा लिये और उसका दावा न्यायालय मे कर दिया न्यायालय ने मूलधन और ब्याह 1.5% कि दर से चुकाने कि डिक्री का आदेश कर दिया तथा पैसा नही चुकाने पर न्यायालय ने उसकी किराये कि दुकान सीज करदी क्या न्यायालय को किराये कि दुकान सिज करने का कानूनी अधिकार है अब वह आदमी क्या करे? M.no.9414872080

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदेश से संतुष्ट न हो तो अपील करो ।

      Delete

lawyer guruji ब्लॉग में आने के लिए और यहाँ पर दिए गए लेख को पढ़ने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद, यदि आपके मन किसी भी प्रकार उचित सवाल है जिसका आप जवाब जानना चाह रहे है, तो यह आप कमेंट बॉक्स में लिख कर पूछ सकते है।

नोट:- लिंक, यूआरएल और आदि साझा करने के लिए ही टिप्पणी न करें।

Powered by Blogger.