बाल विवाह और बाल विवाह के लिए सजा का प्रावधान क्या है ? Child marriage and punishment for child marriage in India.
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नमस्कार दोस्तों,
आज का यह लेख आप सभी के लिए खास इसलिए क्योकि इस लेख में हम बात करने जा रहे है बाल विवाह के बारे जो की एक अपराध की श्रेणी में आता है। इस लेख में हम निम्न विषय के बारे में जानेंगे जैसे कि :-
- बाल विवाह क्या है ?
- बाल विवाह के खिलाफ बने कानून के बारे ?
- बाल विवाह के दोषी के लिए सजा का प्रावधान क्या है ?
बाल विवाह क्या है।
जैसा कि बाल विवाह नाम से ही पता चल रहा होगा की उन नाबालिग बच्चो मध्य विवाह जिसमे लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम और लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम की है। यह वह उम्र होती है जिसमे बच्चो का मानसिक विकास उतना नहीं विकसित होता कि वह विवाह के बारे जान सके और विवाह के लिए अपनी इच्छा से सहमति दे सके। लड़के और लड़की दोनों के परिवार की आपसी सहमति से यह बाल विवाह होता है जिसमे बच्चो की सहमति मायने नहीं रखती। नाबालिग उम्र बच्चो के खेलने और पढ़ने की उम्र होती है न की विवाह के बंधन में बंधने की होती है।
दूसरे शब्दों में बाल विवाह को सकते है की लड़के लड़की की छोटी उम्र में ही विवाह करा देना, जिसमे लड़की की उम्र 18 साल से कम और लड़के की उम्र 21 साल से कम होती है।
बाल विवाह के खिलाफ बने कानून क्या है ?
भारत में बाल विवाह की अधिकतम बढ़ती घटना को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा कई कानून बनाये जो की बाल विवाह पर प्रतिबन्ध लगाते है और यदि बाल विवाह करता है या कराता है तो ऐसे अपराध के लिए सजा और जुर्माने या दोनों सजाओं का प्रावधान किया गया है।
यदि किसी किसी बच्चे को बहला फुसला कर या उत्प्रेरित किया जाता है या विक्रय कर उसका बाल विवाह कराया जाता है या अनैतिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है, तो ऐसा विवाह शुन्य होगा और ऐसा करने वालो को दण्डित किया जायेगा।
बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929:- बाल विवाह पर रोक लगवाने के लिए सरकार ने बाल विवाह निरोधक अधिनयम कानून पास किया जिसके तहत लड़के और लड़की के मध्य विवाह के लिओए एक निर्धारित उम्र तय की गयी। जसके तहत लड़के के लिए विवाह की उम्र 18 साल तय की गयी और लड़की के विवाह की उम्र 14 साल तय की गयी लेकिन इस निर्धारित उम्र से बाल विवाह पर कोई सुधार नहीं हुआ जो की बाद में इस अधिनियम में विवाह के लिए निर्धारित उम्र पर संशोधन किया गया जो कि लड़के के लिए विवाह की उम्र 21 वर्ष की गयी और लड़की के लिए विवाह की उम्र 18 वर्ष क गयी। इस अधिनियम को शारदा अधिनयम के नाम से भी जाना जाता है।
विशेष विवाह अधिनियम 1954 : बाल विवाह पर प्रतिबन्ध लगवाने के लिए राजाराम राय , केशवचन्द्र ने ब्रिटिश सरकार एक बिल पेश किया जो कि बाल विवाह के खिलाफ था जिसका मुख्य उद्देश्य बाल विवाह को रोकना था, ब्रिटिश सरकार द्वारा 1954 में एक बिल पास करवाया गया जिसको विशेष विवाह अधिनयम, 1954 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम के तहत लड़के और लड़की के मध्य विवाह करने के नियम बनाये गए जिसके तहत विवाह के लिए एक निर्धारित उम्र तय की गयी जिसमे लड़के की उम्र 18 वर्ष तय की गयी और लड़की की उम्र 14 वर्ष तय की गयी। इस अधिनियम के पारित होने के बाद भी देश में बाल विवाह की घटनाओं में कोई विशेष सुधार नहीं आया। इस अधिनियम में संशोधन कर विवाह की उम्र तय की गयी जो लड़के के लिए 21 वर्ष और लड़की के लिए 18 वर्ष उम्र निर्धारित की गयी।
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 :- बाल विवाह को रोकने के लिए और बाल विवाह पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए भारत सरकार द्वारा कई कड़े कानून बनाये गए और इन कानूनों में कठिन सजा का भी प्रावधान किया गया उन्ही में से एक बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 है। इस अधिनियम में अंतर्गत विवाह की एक निर्धारित उम्र तय की गयी जिसमे यदि लड़के और लड़की के मध्य विवाह होता है और विवाह के समय लड़के की उम्र 21 से कम है और लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम है तो ऐसा विवाह को प्रतिबंधित करता है। विवाह करने और कराने वालो को दण्डित किया जायेगा यह दंड कारावास या जुर्माने या दोनों से हो सकेगा।
बाल विवहा प्रतिषेध अधिनियम के तहत विवाह शुन्य करने का अधिकार है।
इस बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, के अंतर्गत बाल विवाह के बंधन में आने वाले सभी बालक-बालिका को यह अधिकार है कि बालिग होने पर वे अपने विवाह को शुन्य घोषित कराने के लिए एक याचिका दर्ज करा सकते है।
अगर कोई बच्चा जो की नाबालिग है जिसकी उम्र 18 साल से कम की है और वह अपने बाल विवाह को शुन्य घोषित करवाना चाह रहा है, तो वह बाल विवाह को शून्य घोषित कराने की याचिका को अपने वाद मित्र या अपने संरक्षक के साथ बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी से माध्यम से दर्ज कर सकता है।
विवाह शुन्य घोषित होने के बाद ?
बालक-बालिका के बाल विवाह शुन्य घोषित हो जाने पर लड़के- लड़की दोनों पक्षों के बीच हुए लेने देंन धन, मूल्यवान वस्तुएं, गहने, उपहार और अन्य चीजें वास्तु जो विवाह के दौरान लेन देन में थी वह सभी वापस की जाएँगी और यदि ये सामान वापस नहीं कर पाते है तो ऐसे में इन वस्तुओं के ऐवज में इन्ही वस्तुओ के मूल्य के बराबर की राशि/रकम का भुगतान किया जायेगा।
लेन देन वापस करने की कार्यवाई को सक्षम न्यायालय के द्वारा यथोचित आदेश जारी कर देने के बाद ही की जा सकेगी।
विवाह शून्य घोषित होने पर क्या भरण पोषण मिलेगा ?
बाल विवाह को शुन्य घोषित करने की डिक्री प्रदान करने के समय बाल विवाह के बंधन में आने वाले नाबालिग वर के माता पिता या उसके संरक्षक को यह आदेश दे सकती है की वधु को उसके पुनर्विवाह तक भरण -पोषण का भुगतान करते रहना होगा।
बाल विवाह से जन्मा बच्चा क्या कानूनी वैध होगा ?
जी हाँ, बाल विवाह से जन्मा बच्चा कानूनी वैध होगा और न्यायालय उसके सर्वोत्तम हितो को ध्यान में रखते हुए उस बच्चे की अभिरक्षा पर निर्णय ले सकती है।
बाल विवाह के लिए दंड का प्रावधान क्या है ?
बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई कानून बनाये जो की बाल विवाह के दोषियों के लिए दंड का प्रावधान भी करती है जैसे कि:-
- 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति अगर 18 वर्ष की कम उम्र की किसी बालिका से विवाह करता है, तो जो की कानून और समाज की नजरो में एक अपराध है ऐसे अपराध करने वाले व्यक्ति को कानून द्वारा दण्डित किया जायेगा जो कि 2 साल की कठोर कारावास या 1 लाख रुपया जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
- बाल विवाह करवाने वाले व्यक्ति या ऐसे विवाह को करवाने में मदद करने वाले ,इन दोषियों को भी दण्डित किया जायेगा जो कि 2 साल की कारावास की सजा और 1लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
- अगर कोई व्यक्ति बाल विवाह को बढ़ावा देता है, बाल विवाह की अनुमति देता है या बाल विवाह में शामिल होता है तो ऐसे व्यक्ति को दण्डित किया जायेगा जो कि 2 साल तक की कारावास की सजा या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
बाल विवाह और बाल विवाह के लिए सजा का प्रावधान क्या है ? Child marriage and punishment for child marriage in India.
Reviewed by Lawyer guruji
on
February 07, 2019
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Thanks for reading my article .