नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम बात करेंगे की " नक्शा, खसरा और अधिकार अभिलेख यानी खतौनी में कोई गलती हो जाये या कुछ छूट जाये तो सही कैसे करवाए ?
उपरोक्त तीन शब्दों (विषयो) के बारे में पहले जाने, ताकि लेख समझने में आसानी हो।
1.नक्शा :- नक्शा जिसे आम भाषा में मचित्र कहते है, जो किसी कृषिक भूमि की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है।
नक्शा एक राजस्व अभिलेख है जो कि किसी कृषिक भूमि की चकबंदी होने के बाद में मेड़बंदी करने हेतु रेखकांकित किया जाता है। जिसमे कृषि भूमि की वास्तविक लम्बाई -चौड़ाई व् अकार तथा क्षेत्रफल पूर्णरूपेण राजस्व अधिकारीयों द्वारा दर्शाते हुए भू-अभिलेखों में शामिल किया जाता है। यह नक्शा बंदोबस्त कहाँ जाता है। नक्शा में उस उक्त कृषिक भूमि के उस जगह में होने का साक्ष्य दर्शित होता है, जैसे कि :-
- कृषिक भूमि की रेखा,
- कृषिक भूमि के वास्तविक लम्बाई -चौड़ाई ,
- कृषिक भूमि की क्षेत्रफ़ल
- कृषिक भूमि से सम्बंधित अन्य विवरण।
2. खसरा :- खसरा एक भू राजस्व अभिलेख है , जो कि कृषि भूमि की वास्तविक भौमिक स्थिति को दर्शाता है। खसरा में लेखपाल द्वारा प्रत्येक साल में रबी और खरीब की फसलों का इंद्राज किया जाता है।
3. खतौनी :- खतौनी एक ऐसा दस्तावेज है जो कि भू --राजस्व अभिलेख है, जिसमे भूमि से सम्बंधित निम्न विवरण लिखा होता है, जैसे कि :-
- संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर का नाम,
- भूमि / भूखंड का क्षेत्रफल,
- भूमि / भूखंड का स्थान,
- अन्य सम्बंधित विवरण।
नक्शा , खसरा खतौनी में गलती होने पर व् छूट जाने सही करवाने की प्रक्रिया।
नक्शा, खसरा, खतौनी में किसी प्रकार की गलती हो जाने पर या किसी प्रकार का कोई विवरण छूट जाने पर, ऐसे प्रत्येक गलती और लोप को सुधरने के लिए उत्तर प्रदेश भू- राजस्व संहिता 2006 की धारा 30 में प्रावधान दिया गया है।
नक्शा, खसरा और खतौनी इन तीनो का सम्बन्ध आपस में है, क्योकि ये कृषिक भूमि से सम्बन्ध रखती है। जब आप कोई कृषिक भूमि खरीदते है, तो रजिस्ट्री के हो जाने के बाद कृषिक भूमि की खतौनी में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए दाखिल -ख़ारिज करवाना पड़ता है।
सुधार के लिए प्रार्थना पत्र देना।
अब ऐसे में नक्शा, खसरा और अधिकार अभिलेख यानी खतौनी में किसी प्रकार की कोई गलती हो जाये या कुछ छूट जाये तो उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 38 के तहत ऐसे गलती और छूट को सुधारने के लिए एक लिखित प्रार्थना पत्र तहसीलदार को विहित रूप से दिया जायेगा।
इस प्रार्थना पत्र के साथ वि सभी दस्तावेज लगाए जायेंगे जिनके सम्बन्ध में सुधार होने है।
प्रार्थना पत्र देने के बाद की प्रक्रिया।
उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता 2006 की धारा 38 उपधारा 2 के तहत उपधारा 1 के अंतर्गत नक्शा, खसरा और खतौनी में हुई गलती व् छूट की सुधार के लिए दिए गए प्रार्थना पत्र का तहसीलदार को प्राप्त होने पर या अन्यथा ऐसी गलती व् छूट होने की जानकारी प्राप्त होने पर तहसीलदार ऐसी गलती व् लोप की जाँच करेंगा जो उसे प्रतीत हो और नक्शा में संशोधन सम्बन्धी मामले को अपनी रिपोर्ट के साथ कलेक्टर को तथा अन्य संशोधन मामले की रिपोर्ट के साथ उप जिलाधिकारी को सौंपेगा।
प्रार्थना पत्र पर प्रस्तुत आपत्ति का निवारण।
नक्शा, खसरा और खतौनी के सम्बन्ध में हुई गलती व् लोप के सुधार के लिए तहसीलदार के समक्ष प्रस्तुत प्रार्थना के के विरुद्ध किसी व्यकिती के द्वारा किसी प्रकार की कोई आपत्ति दाखिल की जाती और ऐसी आपत्ति के साथ साक्ष्य प्रस्तुत किये गए है तो इन पर विचार करने के बाद निर्णय होगा। उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 38 की उपधारा 3 के तहत कलेक्टर या उपजिलाधिकारी , जैसी भी स्थिति हो इनके द्वारा अपने समक्ष दाखिल आपत्ति एवं प्रस्तुत साक्ष्य या तहसीलदार के समक्ष दाखिल आपत्ति या प्रस्तुत साक्ष्य पर विचार करने के बाद ही मामले का निर्णय किया जायेगा।
कलेक्टर या उप जिलाधिकारी के निर्णय के विरुद्ध अपील।
नक्शा, खसरा, खतौनी के सम्बन्ध में सुधार प्रार्थना के विरुद्ध दाखिल आपत्ति के सम्बन्ध में कलेक्टर या उप-जिलाधिकारी के द्वारा किये गए किसी आदेश से व्यक्ति व्यथित है, तो उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 38 उपधारा 4 के तहत कलेक्टर या उप जिलाधिकारी के आदेश के विरुद्ध आयुक्त को ऐसे आदेश के पारित होने की तिथि से 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है और इस उपरोक्त अपील में आयुक्त का निर्णय अंतिम होगा।
नक्शा, खसरा व् खतौनी में दर्ज विवरण कब ख़ारिज हो सकते है ?
उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 38 की उपधारा 5 के तहत नक्शा, खसरा या खतौनी में कोई फर्जी या छलसाबित प्रविष्टि को इस धारा के तहत ख़ारिज किया जा सकता है।
अविवादित त्रुटि व् लोप का सुधार।
उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 38 की उपधारा 6 के तहत इस संहिता के अन्य प्रावधानों में किसी बात के होते हुए भी, राजस्व निरीक्षक अधिकार अभिलेख अथवा खसरा की किसी अविवादित त्रुटि या लोप को ऐसी रीति से और ऐसी जाँच, जो निर्धारित की जाये, करने के बाद ठीक कर सकेगा।
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