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कंस्यूमर फोरम / उपभोक्ता आयोग / उपभोक्ता न्यायालय के आदेश का अनुपानलन न होने पर क्या होता है ?

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नमस्कार मित्रों,

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि " कंस्यूमर फोरम / उपभोक्ता आयोग / उपभोक्ता न्यायालय के आदेश का अनुपानलन न होने पर क्या होता है ?" 


उपभोक्ता - वह प्रत्येक व्यक्ति को नित्य किसी -किसी वस्तु का उपभोग व् उपयोग किया करता है। इन्ही उपभोग व् उपयोग करने वाली वस्तुओं में से कुछ बाजार से लेनी पड़ती है, जिनके निर्धारित मूल्य चुकाने पड़ते है। यदि उपभोक्ता बाजार से कोई वस्तु खरीदता है, तो उसके यह विश्वास दिलाया जाये कि जो वस्तु वह उपयोग व् उपभोग के लिए ले रहा है, वह गुणवत्ता और सुरक्षा की नजर से अपनी मानकता पर निर्धारित है। 

उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए 1986, में उपभोक्ता संरक्ष्ण अधिनियम 1986, पारित किया गया। इस अधिनयम का मुख्य उद्देश्य :-
  1. उपभोक्ताओं के हितों पर जोर देना,
  2. उपभोक्ताओं का संरक्षण करना,
  3. उपभोक्ताओं को उनके संरक्षण के लिए अधिकार प्रदान करना,
  4. व्यथित उपभोक्ता द्वारा शिकायत करने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक उपभोक्ता आयोग की स्थापना करना,
  5. व्यापरी या सेवा प्रदान करने वाले और उपभोक्ता के मध्य उत्त्पन हुए विवाद के निपटारे हेतु कार्यवाही करना,
  6. व्यथित उपभोक्ता को पूर्ण रूप से व् उचित न्याय प्रदान करवाना,
  7. व्यापारी या सेवा प्रदान करने वाले व्यक्ति के द्वारा अनुचित या सुरक्षित मॉल या सेवा प्रदान की जाती है, तो दंड का प्रावधान भी है। 
  8. अन्य प्रावधान जो उपभोक्ता के हित और सुरक्षा का विशेष रूप से ध्यान दे। 
ये तो रहे उपभोक्ता अधिनियम के कुछ उद्देश्य, लेकिन मुख्य बात है, उपभोक्ता आयोग के आदेश का अनुपालन न करने पर क्या होगा ?

तो इसको विस्तार से जानेंगे। 

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 उपभोक्ता आयोग के आदेश का अनुपालन न किये जाने पर क्या होगा ?

उपभोक्ता द्वारा ली वस्तु व् सेवा अपनी मानकता पर खरी न उतरने पर या उस वस्तु या सेवा से उपभोक्ता को किसी प्रकार की क्षति हुई, और उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु निर्माता और सेवा प्रदाता को उस वस्तु व् सेवा के कारण हुई क्षति की सूचना दी गयी, उस क्षति का समाधान न हो पाने पर वस्तु निर्माता या सेवा प्रदाता के मध्य उपभोक्ता का विवाद उत्त्पन्न होता है। ऐसे विवाद के निस्तारण के किये लिए व् न्याय प्राप्ति के लिए उपभोक्ता द्वारा उपभोक्ता अधिनियम की धारा 12 के तहत उपभोक्ता मंच ( जिला, राज्य , राष्ट्रीय मंच ) पर शिकायत दर्ज की जाती है।  

उपभोक्ता मंच के द्वारा दोनों पक्षकारों को सुने जाने के बाद निष्कर्ष निकलने के बाद उपभोक्ता मंच द्वारा उपभोक्ता के पक्ष में और व्यापारी या किसी व्यक्ति के विरुद्ध आदेश पारित किया जाता है, और ऐसे आदेश का अनुपालन उस व्यक्ति के द्वारा नहीं किया जाता है जिसके विरुद्ध आदेश पारित किया गया है, तो जिसके पक्ष में आदेश पारित है, उसके द्वारा इस सम्बन्ध में मंच के समक्ष लिखित प्रार्थना पत्र, उपभोक्ता मंच अधिनियम की धारा 25 व् धारा 27 के तहत आदेश का अनुपालन न वाले के विरुद्ध कार्यवाही कर सकेगा।  

चलिए जाने कि धारा 25 व् धारा 27 क्या कहती है ?

1.उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 25 जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के आदेशों का प्रवर्तन यानी लागु करना। 

धारा 25 की उपधारा 1 के तहत जहाँ इस अधिनियम (उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 ) के अधीन जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग द्वारा किये गए अंतरिम आदेश का अनुपालन उस व्यक्ति द्वारा नहीं किया जाता है, जिसको उस आदेश का अनुपालन करना है, वहां यथास्थिति जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग ऐसे आदेश का अनुपालन न करने वाले व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करने का आदेश कर सकेगा। 

2. कुर्की की अवधि कितनी होगी ?

धारा 25 उपधारा 2 के तहत अनुपालन न करने पर कुर्की का आदेश तीन माह की अवधि से अधिक तक लागु नहीं रहेगा। यदि अनुपालन जारी रहता है  ,तो कुर्क की गयी सम्पत्ति की बिक्री की जा सकेगी और उस कुर्की से प्राप्त धनराशि में से, जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग, जिसने कुर्की का आदेश दिया है, ऐसी नुकसानी जो वह ठीक समझे परिवादी को प्रदान कर सकेगा और बाकी का यदि कोई हो उसके हक़दार पक्षकार को दे सकेगा। 

3. धारा 25 की उपधारा 3 के तहत जहाँ कोई रकम , जैसा भी मामला हो जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित किये गए किसी आदेश के अधीन किसी व्यक्ति से वसूली जानी है, वहां उस रकम का हक़दा व्यक्ति, जैसा भी मामला हो जिला पीठ या राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग को आवेदन करे सकेगा और ऐसा आवेदन जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग उस जिले के कलेक्टर को उक्त रकम के लिए एक प्रमाण पत्र जारी कर सकेगा और वह कलेक्टर भू-राजस्व की बकाया के रूप में उसी रीति से उस रकम को वसूल करने के लिए कार्यवाही करेगा।  


2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 27  जुर्माना। 

1. धारा 27 की उपधारा 1 के तहत जहाँ कोई व्यापारी या ऐसा व्यक्ति, जिसके विरुद्ध परिवाद यानी शिकायत की गयी है या परिवादी जैसा भी मामला हो जिला पीठ , राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग द्वारा किये गए किसी आदेश का अनुपालन करने में असफल रहेगा या नहीं करेगा तो वहां ऐसा व्यापारी या व्यक्ति या परिवादी ऐसे कारावास से दंडनीय होगा , जो कि 1 माह कम से कम और 3 वर्ष तक कारावास की सजा से या जुर्माने से जो कि कम से कम 2000 रु अधिक 10000 रु तक जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा। 

 2. जुर्माने का आदेश कौन देगा ?

धारा 27 की उपधारा 2 के तहत दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में शामिल किसी बात के होते हुए भी जैसा मामला हो जिला पीठ , राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग को इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिए प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्ति होगी  शक्तियों प्रकार प्रदान किये जाने पर जैसा मामल हो जिला पीठ, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग जिसको शक्तियों  इस प्रकार प्रदान की जाती है, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के प्रयोजन के लिए प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट समझा जायेगा। 

धारा 27 की उपधारा 3 के तहत इस अधिनियम के अधीन सभी धाराओं का जैसा भी मामला हो जिला पीठ , राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग द्वारा संक्षेपतः विचरण किया जा सकेगा। 


 


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