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दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 156 (3) क्या है ? इसका उपयोग कब होता है ? 156 (3) के तहत एप्लीकेशन लिखते समय ध्यान देने वाले बिंदु कौन से है ?

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नमस्कार मित्रों,

आज के इस लेख में हम दंड प्रक्रिया संहिता 1973, की धारा 156 (3) के बारे में विस्तार जानेंगे, की दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 156 (3) का उपयोग कैसे होता है ?

भारतीय दंड संहिता 1860 में अपराध की परिभाषा दी गयी और इन अपराधों के सम्बन्ध में दिए जाने वाले दंड का भी प्रावधान किया गया है, लेकिन इन अपराधों के सम्बन्ध में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के सम्बन्ध में प्रक्रिया का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता 1973 , में बताया गया है। 

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 156 (3) क्या है ? इसका उपयोग कब होता है ? 156 (3) के तहत एप्लीकेशन लिखते समय ध्यान देने वाले बिंदु कौन से है ?

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 156 (3) को समझने से पहले धारा 154 को समझना आवश्यक है। 

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 154 कहती क्या है ?

दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 154 के तहत जहाँ कही संज्ञेय अपराध के घटित होने की सूचना यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को बोल कर दी जाती है, तो थाने के भरसाधक या उसके द्वारा निर्देशित थाने के किसी पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी जाएगी, और ऐसे संज्ञेय अपराध की सूचना देने वाले व्यक्ति को वह लिखित सूचना पढ़कर सुनाई जाएगी व् ऐसी हर एक सूचना में सूचना देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होंगे। 

यदि यही संज्ञेय अपराध की सूचना लिखित रूप में दी जाती है, तो ऐसी सूचना देने वाले व्यक्ति द्वारा इस लिखित सूचना पर हस्ताक्षर किये जायेंगे। 

संज्ञेय अपराध के घटित होने की सूचना थाने के भारसाधक को मौखिक या लिखित दी जाती है तो, तो ऐसी प्रत्येक सूचना में ऐसी सूचना देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होंगे व् ऐसी सूचना का सार ऐसी पुस्तक में लिखा जायेगा, जो थाने के भारसाधक द्वारा ऐसे रूप में राखी जाएगी  जिसे राज्य सरकार द्वारा घटना की सूचना का लिखने के लिए निर्धारित किया जाये।  

यदि महिलाओ के साथ घटने वाले अपराध की सूचना किसी स्त्री के द्वारा दी जाती है , तो ऐसे हर एक घटना की सूचना मिलने पर थाने की महिला पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी जाएगी ।  

156(3) को लेकर आपके मन में उठने वाले सवाल और उनके जवाब। ...   
  1. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 156 (3) क्या है ? 
  2. इसका उपयोग कब होता है ? 
  3. न्यायालय के समक्ष 156 (3) के तहत एप्लीकेशन लिखते समय ध्यान देने वाले बिंदु कौन से है ? 
इन्ही सवालों के जवाब विस्तार से जाने।  

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 , की धारा 156 (3) क्या है ?

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 156 (3) के अंतर्गत अधिनियम की धारा 190 के अधीन सशक्त प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्राप्त है कि वह किसी भी अपराध के सम्बन्ध में परिवाद मिलने पर उस अपराध का संज्ञान ले सकता है, और अपराध के सम्बन्ध में समुचित जाँच को सुनिश्चित करने का आदेश दे सकता है।इस आदेश में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत किये जाने का निर्देश शामिल है।  

156 (3) को और ही सरलता से समझा जाये तो, 

धारा 154 के तहत जब किसी अपराध के घटने की सूचना थाने के भारसाधक को मौखिक या लिखित रूप से दी जाती है और थाने के भारसाधक द्वारा दर्ज किये जाने से इंकार किये जाने पर व्यथित व्यक्ति अधिनियम की धारा 154 उपधारा 3 के तहत अपराध की सूचना का सार लिखित रूप से पुलिस अधीक्षक को जरिए रजिस्टर्ड डाक भेजता है, और पुलिस अधीक्षक द्वारा भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती है , तो 

अपराध की सूचना देने वाला व्यक्ति अधिनियम की धारा 156 (3 ) के तहत प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट के समक्ष लिखित रूप परिवाद कर प्रार्थना करता है, उक्त अपराध के सम्बन्ध में समुचित जाँच कर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज किये जाने की आदेश पारित किये जाने की कृपा की जाये। 

धारा 190 के अधीन सशक्त प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, अपराध के सम्बन्ध में प्राप्त परिवाद के आधार पर उस अपराध का संज्ञान लेकर , विवेचना यानी जाँच के आदेश दे सकते है , और इस जाँच के निर्देश में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत किये जाने का निर्देश शामिल है। 

156 (3) के तहत न्यायालय के समक्ष एप्लीकेशन लिखते समय ध्यान देने वाले बिंदु कौन से है ?

जब किसी अपराध के सम्बन्ध में धारा 154 के अधीन दर्ज की जाने वाली प्रथिमिक पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज करने से इंकार कर दिया जाता है, तो पीड़िता या उसके परिवार के द्वारा अपने क्षेत्राधिकार की न्यायालय में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग या मजिस्ट्रेट द्वितीय वर्ग की न्यायालय में प्राथमिकी दर्ज  किये जाने का आदेश पारित किये जाने के लिए लिखित प्रार्थना की जाती है।  

इस लिखित प्रार्थना पत्र में लिखे जाने वाले बिंदु कुछ इस प्रकार से है :-
  1. न्यायालय का नाम ,
  2. प्रार्थी का नाम,
  3. प्रतिपक्षी का नाम,
  4. घटना का स्पष्ट विवरण,
  5. घटना का प्रकार,
  6. घटना में शामिल व्यक्ति का नाम,
  7. घटना, घटित होने का स्थान,
  8. घटना, घटित होने का दिन, समय,
  9. घटना, घटित होते समय मौजूद गवाहों का जिक्र,
  10. प्रार्थी द्वारा घटना की सूचना सम्बंधित थाने को दी गयी, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई,
  11. प्रार्थी द्वारा घटना की सूचना जरिये रजिस्टर्ड डाक भेजी गयी, वहाँ से भी कोई कार्यवाही न हुई,
  12. प्रार्थी अब न्याय प्राप्ति के लिए न्यायालय की शरण में आया है। 
156 (3)  प्रार्थना पत्र के साथ लगने वाले दस्तावेज। 
  1. थाने में घटना की लिखित सूचना देने वाला प्रार्थना पत्र की कॉपी,
  2. पुलिस अधीक्षक को घटना की लिखित सूचना जरिये रजिस्टर्ड डाक भेजी गयी ,उसकी एक कॉपी,
  3. रजिस्टर्ड डाक की रसीद की कॉपी,
  4. घटना से सम्बंधित मेडिकल रिपोर्ट। 

4 comments:

  1. बहुत ही जानकारी हुआ आपका लेख पढ़ कर ये जानकारी का मै अपने प्रैक्टिस मे यूज़ भी करता हूँ

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    1. श्याम मौर्या जी धन्यवाद ।

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