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सिविल मुक़दमे के दौरान वादी या प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर मुक़दमे का क्या होगा क्या करना होगा ?

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नमस्कार मित्रों ,

आज के इस लेख में जानेंगे कि सिविल मुक़दमे के दौरान वादी या प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर मुक़दमे का क्या होगा - क्या करना होगा ? 

सिविल मुकदमा यानी संपत्ति को लेकर दो पक्षों के मध्य उत्पन्न हुए विवाद का न्यायिक निस्तारण के लिए क्षेत्राधिकार न्यायालय में वादी द्वारा मुकदमा दायर किया गया , ताकि न्याय मिले।  

मुकदमा दायर होने पर ही मुक़दमे में दो पक्षकार बन जाते है, जो कि एक वादी जो वाद न्यायालय के समक्ष दायर करता है, दूसरा प्रतिवादी जिसके विरुद्ध वाद दायर किया जाता है। 

मुक़दमे की कार्यवाही चला करती है, पर यदि इसी मुक़दमे का निर्णय होने से पहले वाद की कार्यवाही के मध्य एक अकेले वादी या प्रतिवाद या कई वादियों या कई प्रतिवादियों में से एक वादी या प्रतिवादी की मृत्यु हो जाती है, तो मुक़दमे का क्या होगा आगे की कार्यवाही क्या होगी ?

सिविल मुक़दमे में प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर मुक़दमे का क्या होगा - क्या करना होगा ?  order 22 rule 4 of cpc - order 22 rule 9 of cpc - limitation act sec 5


इसी को विस्तार से जानेंगे।  

सिविल मुक़दमे में मुक़दमे के दौरान वादी या प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर क्या होगा व् क्या करना होता है  ? 

सिविल मुक़दमे में मुक़दमे के दौरान वादी या प्रतिवादी की मृत्यु पर न्यायालय के समक्ष मृतक वादी या  प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को वाद का पक्षकार बनाये जाने के लिए निम्न आदेश व् निम्न अधिनियम की धारा के तहत परिस्थिति के अनुसार समय पर आवेदन कर करना होता है  :-
  1.  सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 3 के तहत प्रार्थना पत्र। 
  2. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 4 के तहत प्रार्थना पत्र। 
  3. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 9 के तहत प्रार्थना पत्र।  
  4. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 6 नियम 17 के तहत प्रार्थना पत्र। 
  5. परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के तहत एक प्रार्थना। 
मुक़दमे के दौरान वादी या प्रतिवादी की मृत्यु पर वादी या मृतक वादी के विधिक प्रतिनिधि द्वारा 90 दिनों के भीतर सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 3 के अधीन वादी की मृत्यु पर या आदेश 22 नियम 4 के अधीन प्रतिवादी की मृत्यु पर कायमी मुकामी करनी होती है।

यदि वादी किन्ही उचित व् पर्याप्त कारणों से 90 दिनों के भीतर कायम मुकामी न कर पाने में असमर्थ था, तो परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के साथ कायम मुकामी के लिए प्रार्थना पत्र समक्ष न्यायालय दाखिल करना होगा। 

यदि 90 दिन की अवधि से अधिक का समय बीत जाता है, और वादी कायम मुकामी कर पाने में असमर्थ था , तो सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 3 वादी की मृत्यु पर या आदेश 22 नियम 4  प्रतिवादी की मृत्यु पर कायम मुकामी प्रार्थना पत्र के साथ, आदेश 6 नियम 17 , आदेश 22 नियम 9 व् परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रार्थना पत्र  न्यायालय के समक्ष कायम मुकामी के लिए दाखिल करना होगा ।  

आदेश 22 नियम 3 व् आदेश 22 नियम 4 की प्रार्थना पत्र के साथ आदेश 6 नियम 17 जो की वाद पत्र में संशोधन के लिए होती है, दाखिल करनी होगी। 

इन सभी को ओर विस्तार से जाने, ताकि अच्छे से समझ में आये। 

1. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 3 के तहत प्राथना पत्र। ( वादी की मृत्यु पर )

सिविल मुक़दमे में निर्णय से पहले वाद की कार्यवाही के बीच यदि वादी की मृत्यु हो जाती है, तो वादी के विधिक उत्तराधिकारी को वादी की मृत्यु होने की सूचना प्रार्थना पत्र के माध्यम से न्यायालय को नियमित रूप से नियमित समय के भीतर देनी होती है। इसके सम्बन्ध में प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 नियम 3 में दिया गया है, जहाँ मृतक वादी के विधिक उत्तराधिकारी द्वारा 90 दिनों के भीतर न्यायालय के समक्ष कायम मुकामी के लिए प्रार्थना पत्र देना होता है। 

इस लिखित प्रार्थना पत्र के माध्यम से न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की जाती है कि, उपरोक्त वाद में वादी की मृत्यु हो गयी है, मृतक वादी के विधिक उत्तराधिकार को वाद का पक्षकार बनाया जाना अति आवश्यक है। अतः श्रीमान जी से प्रार्थना है कि मृतक वादी के विधिक उत्तराधिकारी को वाद का पक्षकार बनाये जाने आदेश पारित किये जाने की  कृपा की जाये।  

आदेश  22 नियम 3 के तहत वादी की मृत्यु पर उसके विधिक उत्तराधिकारी को वाद का पक्षकार बनाये जाने के लिए वादी की मृत्यु से 90 दिनों के भीतर प्रार्थना पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुतु कर दिया जाता है, तो न्यायालय उस प्रार्थना पत्र को स्वीकार मृतक  वादी के विधिक उत्तराधिकार को वाद का पक्षकार बनाएगा और वाद की कार्यवाही अग्रसर रहेगी।  और वह व्यक्ति जो मृतक वादी का विधिक प्रतिनिधि है, इसके नाते अपनी हैसियत से वाद के सम्बन्ध में समुचित प्रतिरक्षा कर सकेगा।  

2. . सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 4 के तहत प्रार्थना पत्र। (प्रतिवादी की मृत्यु पर )

सिविल मुक़दमे में निर्णय से पहले वाद की कार्यवाही के बीच में यदि प्रतिवादी की मृत्यु हो जाती है, तो वादी को प्रतिवादी की मृत्यु होने की सूचना  प्रार्थना पत्र के माध्यम न्यायालय को नियमित समय के भीतर देनी होती है। इसके सम्बन्ध में प्रावधान सिविल प्रक्रिया 1908 के आदेश 22 नियम 4 में दिया गया है, जहाँ पर प्रतिवादी की मृत्यु होने पर वादी द्वारा परिसीमा अधिनियम के तहत 90 दिनों के भीतर कायम मुकामी के लिए एक लिखित प्रार्थना पत्र देना होता है। 

इस लिखित प्रार्थना पत्र के माध्यम से न्यायालय के समक्ष में प्रार्थना की जाती है की उपरोक्त वाद में प्रतिवादी की मृत्यु हो गयी है, न्यायहित में मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को वाद का पक्षकार बनाया जाना अति आवश्यक है।  अतः श्रीमान जी से प्रार्थना है कि मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को वाद का पक्षकार बनाये जाने का आदेश पारित किये जाने की कृपा की जाये। 

आदेश 22 नियम 4 के तहत वादी द्वारा प्रतिवादी की मृत्यु पर उसके विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनाये जाने के लिए नियमित तिथि यानी मृतक प्रतिवादी की मृत्यु से 90  दिनों के भीतर आवेदन कर दिया जाता है, तो न्यायालय  आवेदन को स्वीकार कर मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को वाद का पक्षकार बनाएगा और वाद की कार्यवाही अग्रसर रहेगी और वह व्यक्ति जो मृतक प्रतिवादी का विधिक प्रतिनिधि है , इस नाते अपनी हैसीयत से वाद के सम्बन्ध में समुचित प्रतिरक्षा कर सकेगा। 

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 17 के तहत प्रार्थना पत्र ( वाद पत्र में संशोधन हेतु प्रार्थना पत्र) 

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 17 के तहत, यदि वाद पत्र में किसी भी प्रकार का कोई आवश्यक विधि पूर्ण संशोधन करने की आवश्यकता होती है, वाद पत्र में वांछित संशोधन लिखित रूप से प्रार्थना पत्र के माध्यम से न्यायालय के समक्ष नियमित समय के भीतर प्रस्तुतु करनी होती है। 

आदेश 22 नियम 3 वादी की मृत्यु पर उसके विधिक प्रतिनिधि को प्रस्थापित करने हेतु व् आदेश 22 नियम 4 प्रतिवादी की मृत्यु पर उसके विधिक प्रतिनिधि को प्रस्थापित करने हेतु लिखित प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना होता है। और इसी प्रार्थना पत्र के आधार  विधिक प्रतिनिधि का नाम जोड़े जाने के लिए वाद पत्र में संशोधन किया जायेगा। 

वाद पत्र में मृतक वादी या मृतक प्रतिवादी के के नाम के आगे लाल स्याही से मृतक लिखकर, इसके निचे इनके विधिक प्रतिनिधि का नाम  1 /1 करके लिखा जायेगा। 

यदि कई है तो, 1 / 1 , 1 /2 , 1 /3 , ऐसे ही जितने होंगे सबके नाम लिखे जायेंगे। 


वाद में वादी या प्रतिवादी की मृत्यु होने के कितने दिनों के भीतर पक्षकार बनाये जाने के लिए आवेदन करना होता है ?

सिविल मुक़दमे में वादी या प्रतिवादी की मृत्यु पर वादी या उसके विधिक प्रतिनिधि की ओर से मृतक वादी या प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को वाद का पक्षकार बनाये जाने के लिए न्यायालय के समक्ष आवेदन 90 दिनों के भीतर करना होगा। 

वाद में वादी या प्रतिवादी की मृत्यु पर वादी या उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा मृतक वादी या प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनाये जाने के लिए आवेदन नहीं किया जाता है तो क्या होगा ?

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 3 के तहत वादी की मृत्यु पर उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा या आदेश 22 नियम 4 के तहत प्रतिवादी की मृत्यु पर वादी या उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को उस वाद में पक्षकार बनाये जाने हेतु मृत्यु से 90 दिनों के भीतर आवेदन नहीं किया जाता है, तो वहाँ पर वाद का जहाँ तक मृतक प्रतिवादी का वाद में हित है, वहाँ तक मृतक प्रतिवादी के विरुद्ध वाद का उपशमन हो जायेगा , यानी वाद उसके हित तक abate कर दिया जायेगा। 

यदि वादी  90 दिनों के भीतर मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनाये जाने के लिए आवेदन नहीं कर सका और वाद उसके तक उपशमित कर दिया जाता है ,तो पुनः वाद कायम करने के लिए क्या करना होगा ?

यदि वाद की कार्यवाही के मध्य प्रतिवादी की मृत्यु हो जाती है, और वादी को वाद लाने का अधिकार बचा रहता है, वादी द्वारा मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को वाद की कार्यवाही के लिए प्रतिस्थापित यानी वाद का आवश्यक पक्षकार बनाये जाने के लिए आवेदन न्यायालय के समक्ष 90 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है, तो न्यायालय मृतक प्रतिवादी के हित तक के वाद को उपशमित / ख़ारिज करने का आदेश कर देती है। तो ऐसे में वादी द्वारा वाद के उपशमित होने वाले आदेश को अपास्त कराने के लिए न्यायालय के समक्ष आदेश 22 नियम 9 के तहत आवेदन करना होगा  :-

1. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 9 के तहत एक प्रार्थना पत्र। 
2. परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के तहत एक प्रार्थना पत्र। 

1. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 9 के तहत प्रार्थना देना होगा ?

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 22 नियम 9 के तहत वादी या मृत वादी का विधिक प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले वाला व्यक्ति, वाद के उपशमन या ख़ारिज अपास्त करने वाले आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा। 

प्रार्थना पत्र के जरिये वादी द्वारा यह साबित कर दिया जाता है, कि वह किन्ही उचित पर्याप्त कारणों से वाद चालू रख पाने में असमर्थ था. तो न्यायालय  खर्चो के बारे में ऐसे निबंधनों पर या अन्यथा जो न्यायालय ठीक समझे, वाद के उपशमन या खारिजी अपास्त करेगा। 

वाद की कार्यवाही वैसे ही चालू हो जाएगी जैसे पहले चालू थी।  

2. परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के तहत उचित पर्याप्त कारण बताते हुए एक प्रार्थना पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।  
इस प्रार्थना पत्र में वादी को वे उचित प्रयाप्त कारण दर्शाने होंगे, जिनके कारण से वादी ,प्रतिवादी की मृत्यु पर उसके विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनाया जाये, ऐसा आवेदन करने में देरी क्यों हुई।  


यदि इसमें कोई त्रुटि हो या कुछ लोप हो या कोई सुझाव हो, विद्वान् अधिवक्ता अपना मूल्य ज्ञान देकर इस लेख में हुई त्रुटि या लोप का सुधार करने की कृपा करे।  




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