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झूठी FIR दर्ज हो जाने पर क्या करे ?What to do if someone filed a fake fir against on you

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नमस्कार मित्रों ,
आज के इस लेख में आप सभी को " झूठी FIR दर्ज हो जाने पर क्या करे , इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहा हु। 
Jhoothi F.I.R likh jane par kya kare ? ( What to do if some one filed a fake F.I.R against on you.)

झूठी FIR दर्ज हो जाने पर क्या करें ?
जहाँ किसी व्यक्ति को यह पूर्ण विश्वास व् युक्तियुक्त विश्वास करने का पूर्ण कारण है कि उसके खिलाफ लिखाई गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट झूठी, कूट रचित है , तो वह व्यक्ति इस झुठी प्रथम सूचना रिपोर्ट को जो उसके खिलाफ दर्ज है , रद्द कराने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता 1973 ,की धारा 482 के तहत न्यायालय में प्रथम सूचना रिपोर्ट रद्द कराने के सम्बन्ध में उच्च न्यायालय के समक्ष एक प्रार्थना पत्र दे सकते है। 


प्रथम सूचना रिपोर्ट रद्द करवाने की जरुरत कब पड़ती है ?
प्रथम सूचना रिपोर्ट रद्द करवाने के लिए न्यायालय के समक्ष आप निम्न आधारों पर प्रार्थना पत्र दे सकते है और ये आधार परिस्थितियों के अनुसार अलग भी हो सकते है। 
  1. साजिस के चलते लोग एक दूसरे के विरुद्ध झूठी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा देते है। 
  2. गलत भावना के चलते व्यक्ति एक दूसरे के विरुद्ध झूठी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा देते है। 
  3. आपसी रंजिस के चलते व्यक्ति एक दूसरे के विरुद्ध झूठी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा देते है। 
  4. अन्य आधार जिनके तहत झूठी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराइ गयी है। 
झूठी FIR दर्ज होने पर व्यक्ति पर क्या असर पड़ता है ?
जब किसी व्यक्ति के ऊपर रंजिस, साजिस,गलत भावना या अन्य कारणों से झूठी FIR दर्ज करा दी जाती है, जिसका परिणाम उस व्यक्ति को कई मुसीबत का सामना करना पड़ता है जैसे कि :-
  1. पुलिस द्वारा उस व्यक्ति की गिरफ़्तारी।
  2. कुछ अवधि तक कारावास में समय व्यतीत करना।
  3. उस व्यक्ति का समय, रुपया और जीवन बरबाद होता है। 
  4. समाज में उसकी मान प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचती है , क्योकि समाज में जेल जाने वाले व्यक्ति की सब गलत नजरो से देखते है और न ही कोई इज्जत देते है।  
झूठी FIR रद्द करवाने की प्रकिया क्या है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय की उसकी अंतर्निहित शक्तियों के बारे में बताया गया  है, जहाँ न्यायालय को यह पूर्ण अधिकार है कि न्यायालय की कार्यवाही का गलत तरह से उपयोग होना रोका जाये।यदि न्यायालय को पूरी तरह से विश्वास करने का कारण है कि किसी दाण्डिक कार्यवाही में न्यायालय की प्रक्रिया का दुर्भावनापूर्ण उपयोग किया जा रहा है या न्यायालय की प्रक्रिया का दुरूपयोग किया जा रहा है तो न्यायालय ऐसे दाण्डिक कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दे सकती है। 

धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय में झूठी व् कूटरचित FIR रद्द करने के लिए एक लिखित प्रार्थना पत्र तैयार कर दिया जा सकता है। जिस व्यक्ति के विरुद्ध झूठी FIR दर्ज कराइ गयी है वह व्यक्ति धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष अपने अधिवक्ता के जरिये  झूठी FIR रद्द करवाने के सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र दे सकता है। 

प्रार्थना पत्र देने के बाद उस पर सुनवाई होगी और न्यायालय इस प्राथना पत्र के आधार पर जाँच अधिकारी को आदेश देगी कि इस प्रथम सूचना रिपोर्ट की जाँच कर इसकी सच्चाई की रिपोर्ट दे। 

जहाँ किसी व्यक्ति के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा 498  के तहत पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता किये जाने के सम्बन्ध में FIR दर्ज कराइ गयी है, और इस सम्बन्ध में जहाँ पति या उसके नातेदारों को यह  विश्वास है कि  ऐसी FIR झूठी है और ऐसी FIR रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय में प्रर्थना पत्र दिया गया है और मामला  जब तक न्यायालय में चल रहा है तब तक पुलिस उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकती है। 

यदि व्यक्ति के खिलाफ गिरफ़्तारी का वारंट जारी कर दिया गया है तो न्यायालय में मामले की कार्यवाही के दौरान आदेश आने तक गिरफ़्तारी रुकी रहेगी। 

जाँच रिपोर्ट में और न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर FIR झूठी पायी जाती है ,तो उस झूठी FIR को न्यायालय रद्द कर देता है। 

FIR रद्द कराने के सम्बन्ध में  प्रार्थना पत्र देते समय ध्यान रखने वाली बात। / Quashing of F.I.R  application . 
  1. प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक कॉपी। 
  2. झूठी FIR के समबन्ध में साक्ष्य। 
  3. उस हर एक बात का जिक्र जिसके आप शिकार हुए है। 
  4. यदि कोई व्यक्ति आपके पक्ष में गवाही देने को तैयार है तो व्यक्तियों के नाम। 
  5. आपको उन सभी आधारों के बारे में बताना होगा जिसके आधार पर आपके विरुद्ध FIR दर्ज की गयी। 

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