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नमस्कार मित्रो,
आज के इस लेख में आप सभी को "हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत हिन्दू विवाह की शर्तो क्या है " के बारे में विस्तार से बताने वाला हु।
विवाह और शादी ये दो शब्द भिन्न तो अवश्य है पर इनका अर्थ एक ही है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, के तहत हिन्दू धर्म में विवाह के लिए शर्तो का प्रावधान किया गया है। इन शर्तो के पूर्ण होने पर ही दो हिन्दुओ जोड़े के मध्य विवाह वैध माना जायेगा। यह शर्ते हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 में वर्णित की गयी है। यदि इन वर्णित शर्तो का उल्लंघन किसी भी पक्षकार के द्वारा किया जाता है तो उन दोनों के मध्य हुआ विवाह शुन्य माना जायेगा। शर्तो के उल्लंघन में अधिनियम की धारा 18 के तहत दण्डित भी किया जायेगा।
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत विवाह की शर्ते क्या है ?
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 में हिन्दू विवाह के लिए शर्तो का उल्लेख किया गया है जो कि निम्न है :-
- दोनों पक्षकारो में से किसी का पति या पत्नी विवाह के दौरान जीवित न हो,
- विवाह के दौरान दोनों पक्षकारों की मानसिक स्थिति सही हो,
- विवाह के दौरान वर की उम्र 21 वर्ष व् वधु की उम्र 18 वर्ष पूर्ण हो गयी हो,
- दोनों पक्षकार निषिद्ध नातेदारी के भीतर न आते हो,
- दोनों पक्षकार एक दूसरे के सपिण्डा न हो।
1. एक विवाह की अनुमति - Monogamy
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 की शर्तो में से एक शर्त एक विवाह करने की अनुमति ही प्रदान करती है। द्विविवाह पर प्रतिबन्ध लगाती है। इस अधिनियम की शर्ते के अनुसार एक विवाह मान्य तभी होगा जब दोनों पक्षकार विवाह के दौरान पहले से विवाहित न हो। यदि विवाहित है तो दोनों में से किसी पति या पत्नी जीवित न हो। यदि विवाह के समय या विवाह के बाद ऐसा पाया जाता है कि दोनों पक्षकारो में से की ने भी विवाह की शर्त का उल्लंघन किया है तो इसी अधिनियम में दण्डित प्रावधान के तहत दण्डित किये जायेंगे।
द्विविवाह के दोषी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 494 व् धारा 495 के तहत दण्डित किया जायेगा।
2. मानसिक स्थिति।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 की दूसरी शर्त विवाह के समय दोनों पक्षकारों यानी वर वधु की मानसिक स्थिति सही होनी चाहिए। मानसिक स्थिति ये आशय दोनों विवाह के रीती -रिवाजो को समझने में सक्षम हो। विवाह के लिए दोनों की आपसी स्वतंत्र सहमति होनी आवश्यक है।
3. विवाह की उम्र।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 की तीसरी शर्त विवाह की उम्र है। इस अधिनियम के तहत विवाह के लिए एक निर्धारित उम्र तय की गयी है जो कि विवाह के समय वर की उम्र 21 वर्ष व् वधु की उम्र 18 वर्ष पूर्ण हो गयी हो। विवाह की उम्र निर्धारित करने के पीछे बाल विवाह को रोकना व् उस पर प्रतिबन्ध लगाना और ऐसा न मानने वालो को दण्डित करना है।
जहाँ किसी पक्षकार के द्वारा विवाह की निर्धारित उम्र से पहले विवाह कर नियमो का उल्लंघन किया जाता है तो ऐसा करने वालो को 10 साल तक कारावास की सजा व् 1 लाख जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
Yadi kisi bhi party ki taraf se is shart ka ullanghan kiya jata hai to vah party sja ki patr hogi jo ki 10 vrash ki karavas se sja ya arthik dand jo ki 1 lakh rupya tak ki hogi ya dono se.
4.निषिद्ध नातेदारी।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 विवाह की शर्तो के अनुसार विवाह तभी मान्य होगा जब वह विवाह एक दूसरे की रिश्तेदार न हो यानी निषिद्ध रिश्तेदारी के भीतर न आते हो।
निषिद्ध रिश्तेदारी से आशय माँ की पीढ़ी से 3 ऊपर की पीढ़ी व् बाप क पीढ़ी से पांच पीढ़ी ऊपर तक से है, इन पीढ़ी की रिश्तेदारी में विवाह मान्य नहीं होगा।
यदि किसी पक्षकार द्वारा इस नियम का उललंघन किया जाता है तो ऐसा विवाह शून्य माना जायेगा और दोषी पक्षकार को दण्डित किया जायेगा। अधिनियम की धारा 18 के तहत 1 महीने तक कारावास की सजा या 1 हजार रु जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
5. सपिण्डा नातेदारी
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 विवाह की शर्तो के अनुसार सपिण्डा नातेदारी के मध्य विवाह नहीं हो सकता। सपिण्डा नातेदारी से आशय माँ की 3 पीढ़ी तक व् पिता की 5 पीढ़ी तक से है।
जहाँ किसी भी पक्षकार द्वारा इस नियम का उल्लंघन किया जाता है तो अधिनियम की धारा 18 के तहत दोषी पक्षकार को 1 महीने तक कारावास की सजा व् 1 हजार रु जुर्माना से या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
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