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निजी सुरक्षा का अधिकार क्या है और इस अधिकार के प्रयोग से होने वाला अपराध क्या अपराध है ? What is the right of private defence and the offence committed by the use of this right is a crime

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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को आपके अधिकारों के बारे में बताने जा रहा हु। भारतीय संविधान द्वारा आप सभी को मौलिक अधिकार प्रदान किये गए है वैसे ही भारतीय दंड संहिता के तहत आप सभी को निजी सुरक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है। भारतीय सरकार ने अपने नागरिको के हितो को ध्यान में रखते हुए ऐसे ही कई अधिकार प्रदान किये है। भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 तक निजी सुरक्षा का अधिकार  के बारे में बताया गया है। 
सबसे पहले हम आपको निजी सुरक्षा का अधिकार क्या है इसके बारे में बता दे, ताकि आपको समझने में आसनी हो सके।
निजी सुरक्षा का अधिकार क्या है और इस अधिकार के प्रयोग से होने वाला अपराध क्या अपराध है ? What is the right of private defence and the offence committed by the use of this right is a crime ?

निजी सुरक्षा का अधिकार क्या है ?
निजी सुरक्षा का अधिकार से मतलब उस अधिकार से है जो की व्यक्ति अपनी स्वयं या अपनी संपत्ति पर होने वाले हमलो के खिलाफ कोई कार्य कर उसकी सुरक्षा करता है।
जैसे मान ले कि कोई अमुक व्यक्ति आप पर गंभीर चोट कारित करने के प्रयोजन से हमला करता है और आपको भी यह आभास या शंका है कि उस हमले से आपको गंभीर चोट लग सकती है, तो ऐसे में आप अपने को उस हमले से बचने के लिए आप भी कुछ न कुछ बल का प्रयोग जरूर करेंगे हो सकता है कि आप भी उस पर हमला करे। जब व्यक्ति अपने आप को किसी हमले से बचने के लिए बल का प्रयोग करता है, तो उसे आत्म रक्षा / निजी सुरक्षा कहा जायेगा। लेकिन आत्म रक्षा / निजी सुरक्षा के दौरान आप को इस बात का जरूर ज्ञान हो की उतने ही बल का प्रयोग करे जितने बल की आवश्यकता है।
लेकिन कभी कभी कुछ ऐसी परिस्थिति हो जाती है कि आवश्यक बल से अधिक बल का प्रयोग हो जा जाता है।

अब हम बात करने जा रहे है भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106   के बारे में कि इन हर एक धाराओं में क्या क्या कहा गया है।

निजी सुरक्षा का अधिकार भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक। 
धारा 96: भारतीय दंड संहिता की धारा 96 इस बात को बताती है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाने वाली कोई बात अपराध नहीं है। यदि आप पर कोई अमुक व्यक्ति हमला कर रहा है तो आप अपने को बचाने के लिए उतने ही बल का प्रयोग कर सकते है जितने बल की आवश्यकता है। 

धारा 97:  शरीर तथा संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार : 
 भारतीय दंड संहिता की धारा 97 के तहत हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने स्वयं और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर और संपत्ति की रक्षा के लिए आवश्यक बल का प्रयोग कर सकता है।  इस धारा पर दो बातो पर ध्यान दिया गया है पहला मानव शरीर और दूसरा संपत्ति अब संपत्ति चाहे जंगम हो या स्थावर दोनों की प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक बल का प्रयोग किया जा सकता है।

पहला: मानव शरीर प्रतिरक्षा का अधिकार ऐसा अधिकार है जिसके तहत यदि किसी व्यक्ति पर ऐसा हमला होता है जो की उसके स्वयं के शरीर या किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर प्रभाव डालता है तो ऐसे हर अपराध के खिलाफ प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर अपने शरीर या अन्य किसी व्यक्ति के शरीर का बचाव कर सकता है।
दूसरा: संपत्ति का अधिकार के तहत यदि कोई व्यक्ति आपकी या किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति को चुराता है, लूटता है, संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है या आपराधिक अतिचार करने का प्रत्यन करता है, तो ऐसे आप उस संपत्ति को चाहे वह जंगम हो या स्थावर बचाने के लिए निजी सुरक्षा के अधिकार के तहत आवश्यक बल का प्रयोग कर उस संपत्ति की रक्षा कर सकते है।

धारा 98: निजी रक्षा  का अधिकार ऐसे व्यक्ति के कार्य के खिलाफ जो विकृतचित आदि हो। 
निजी सुरक्षा का अधिकार ऐसे व्यक्ति के कार्य के खिलाफ भी उपलब्ध है जो मानसिक रूप से असक्षम है, व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक़्वता के आभाव, चित्तविकृत  मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के भ्र्म के कारण कोई अपराध होता है, तब प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के खिलाफ निजी सुरक्षा के अधिकार के तहत आवश्यक बल का प्रयोग कर अपना बचाव कर सकता है।
  1. एक व्यक्ति पागलपन के असर में दूसरे व्यक्ति को जान से मारने का कोशिश करता है , यहाँ  वह पागलपन के असर वाला व्यक्ति दोषी नहीं है, लेकिन उस दूसरे व्यक्ति जिस पर हमला किया गया उसे निजी सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। 
धारा 99:  ऐसे कार्य जिनके खिलाफ निजी रक्षा का अधिकार नहीं है।  
भारतीय कानून द्वारा निजी सुरक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है वही कुछ ऐसे कार्य भी है जिनके खिलाफ निजी सुरक्षा का प्रदान नहीं किया गया है :-

  1. यदि कोई कार्य सदभावपूर्वक लोकसेवक के निदेश से किया जाता है, या किये जाने का प्रयत्न किया जाता है, जिसमें मृत्यु या गंभीर चोट होने की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, तो ऐसे में उस कार्य के खिलाफ निजी सुरक्षा का अधिकार नागरिको का प्राप्त नहीं होगा चाहे वह कार्य विधि अनुसार पूर्ण रूप से न्यायिक न भी हो।  
  2. ऐसी परिस्थितियां जिनमें संरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों से मदद प्राप्त करने के लिए समय है, तो ऐसे में निजी सुरक्षा का अधिकार का प्रयोग नहीं किया जायेगा और न ही अधिकार है।  
धारा 100: शरीर की निजी रक्षा के अधिकार तहत कब मृत्यु कारित की जा सकती है। 
भारतीय कानून द्वारा सभी नागरिको निजी सुरक्षा का अधिकार कानूनी रूप से प्रदान किया गया है, वह अपने स्वयं की रक्षा के आवश्यक बल का उपयोग कर अपने को किसी आपराधिक हमले से बचा सकता है। कभी कभी ऐसी परिस्थिति सामने होती है जिनके होने पर हम आप तुरंत पुलिस को नहीं बुला सकते तो ऐसे में स्वयं की रक्षा के यह अधिकार सभी नागरिको को इसलिए प्रदान किये गए है।
अब हम बात करेंगे उन परिथितियों के बारे में जब कोई व्यक्ति स्वयं की रक्षा के समय हमला करने वाले की मृत्यु कारित कर सकता है :-

  1. ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका हो कि ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा,
  2. ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका हो की ऐसे हमले का परिणाम गंभीर चोट, गहरी चोट, घोर उपहति होगा,
  3. ऐसा हमला बलात्संग करने के इरादे से किया गया,
  4. ऐसा हमला जो प्रकृति के खिलाफ काम तृष्णा की तृप्ति के इरादे से किया गया,
  5. ऐसा हमला जो की व्यपहरण और अपहरण करने के इरादे से किया गया,
  6. ऐसी परिस्थितियाँ जहा व्यक्ति स्वयं को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की मदद प्राप्त नहीं कर सकता,
  7. तेजाब फेंकने हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका हो कि ऐसे हमले का परिणाम गंभीर चोट होगा।
धारा 102 :  शरीर की निजी रक्षा के अधिकार का प्रारंभ होना और बना रहना-
शरीर की निजी रक्षा के अधिकार उस समय से शुरू हो जाता है जब अपराध करने के कोशिश या धमकी से व्यक्ति के शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है भले ही  वह अपराध किया न गया हो, और निजी सुरक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है। 

धारा 103 : संपत्ति की निजी रक्षा के अधिकार के तहत कब मृत्यु कारित हो सकती है। 

भारतीय कानून द्वारा निजी सुरक्षा के अधिकार के तहत संपत्ति की रक्षा का अधिकार भी प्रदान किया गया है कि वह संपत्ति की रक्षा के लिए आवश्यक बल का प्रयोग कर सकता है पर कुछ ऐसी परिस्थितिया सामने आ जाती है जिनमे बचाव के समय अपराधी की मृत्यु भी हो जाती है जैसे कि :-

  1. लूट,
  2. रात्रि के समय गृह भेदन,
  3. अग्नि के द्वारा रीष्टि जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू  या जलयान में की गयी है जो की मानव आवास या संपत्ति की अभिरक्षा के रूप में उपयोग की जाती है,
  4. चोरी, रीष्टि या गृहअतिचार जिसमे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका पैदा होती हो कि यदि निजी सुरक्षा के अधिकार का प्रयोग नहीं किया गया तो परिणाम गंभीर चोट या मृत्यु होगा।  
  5. ऐसी सम्पति जो सरकारी हो,  किसी स्थानीय प्राधिकारी या सरकार के स्वामित्व में या उसके नियंत्रण अन्य निगम के मतलब हो या प्रयुक्त किये जाने के लिए अभिप्रेत हो,
  6. रेल्वी स्टोर,
  7. किसी ट्रांसपोर्ट वाहन।
धारा 105 : संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार का प्रारंभ होना और बना रहना। 
संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है जब उस संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारम्भ होती है।

  1. चोरी के समय संपत्ति की रक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब वह संपत्ति चोर की पहुंच से बाहर न हो जाये या तो लोक प्राधिकारियों की मदद मिलने तक या जब तक संपत्ति वापस नहीं पा लेता है,
  2. लूट के समय संपत्ति की रक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु, या चोट, या सदोष अवरोध कारित करता है या कारित करने की कोशिश करता रहता है। या तत्काल मृत्यु, चोट, व्यक्तिगत अवरोध का भय बना रहता है,
  3. आपराधिक अतिचार या रीष्टि के समय संपत्ति निजी रक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब तक अपराधी अतिचार या रीष्टि करता रहता है,
  4. गृह भेदन के समय संपत्ति की रक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब तक ऐसा गृह भेदन से शुरू हुआ गृह अतिचार होता रहता है।  
धारा 106 :  घातक हमले के खिलाफ निजी सुरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को चोट होने का जोखिम है। 
ऐसा हमला जिसके होने से म्रुत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से  होने को होती है, ऐसे हमले के खिलाफ निजी सुरक्षा का अधिकार प्रयोग करने में यदि व्यक्ति ऐसी स्थिति में हो की निर्दोष व्यक्ति की अपहानि के बिना का प्रयोग कार्यसाधक  रूप से नहीं कर सकता तो उसके निजी सुरक्षा का अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है।
इस धारा को हम एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते है।

पर एक भीड़ के द्वारा हमला किया जाता है, जो की उसकी हत्या करने की कोशिश करती है।  पर गोली चलाये बिना निजी सुरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से नहीं कर सकता, और वह भीड़ मिले हुए छोटे छोटे बच्चों को नुकसान पहुचाये  बिना गोली नहीं चला सकता। यदि वह इस प्रकार गोली चलाने से उन बच्चो में से किसी बच्चे को नुकसान पहुँचाता भी है तो कोई अपराध नहीं करता। 

6 comments:

  1. I am an Ex-SM (Army) and presently employed as Assistant Teacher in Basic Shiksha Parishad UP. I had applied for an arm license with District Magistrate. My application duly completed had been reached in DM office. After passing four months even meeting with DM, no result on the issue. However license are issuing with political effects.

    May I go to High Court on the issue to get license under Right to Equality (Anuchchhed 14) of Indian Constitution or please advise further what should I do?

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  2. For what reason have you applied to obtain an ARM license?

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  3. yaadi patne apny husband ko mrwadati h to koon see act. lagta h

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    1. भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120B लगेगी ।

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  4. भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120B लगेगी ।

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  5. मेरा बड़ा भाई एबं उसकी पत्नी मेरी बिधबा माँ को गालियाँ देती है बा उनसे पैसे भी मांगती है क्योंकि मेरी माँ को पेंशन मिलती है क्या माँ के द्वारा भरण पोषण एक्ट के तहत अबेदन किया जा सकता है अगर किया जाता है तो कहा पर करे

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